पराक्रम दिवस पर नेताजी सुभाष चंद्र जी बोस को शत शत नमन
प्रधान सेवक मोदी ने नेता सुभाष चंद्र जी बोस की जयंती २३ जनवरी को पराक्रम दिवस घोषित किया।
Positive India:Ajay Mittal & Ajit Singh:
सनातन राष्ट्रवाद की वैचारिकता को अपना सब कुछ मानने वाले भारतीय जनमानस के ह्रदय मे स्थापित नेता सुभाष चंद्र जी बोस की जयंती २३ जनवरी को प्रधान सेवक मोदी जी द्वारा यथोचित सम्मान देते हुये पराक्रम दिवस घोषित करके वास्तव मे साबित कर दिया कि पूज्य हीराबेन जी के सपूत के मन,मस्तिष्क और मानसिकता मे केवल राष्ट्रवाद और सनातन हित ही सांस लेता है…!
——————————————-
अब अजय मित्तल जी को पढ़िये………👇👇
1938 में प्रथम बार कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद विजयरत्न मजूमदार से वार्ता करते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कहा था “शीघ्र ही वह समय आएगा जब भारत को अपनी आजादी की लड़ाई के लिए शिवाजी का मार्ग अपनाना होगा, यह सुनकर मजूमदार चौंके”!
उन दिनों कोई भी बात हो उसकी कसौटी हिंसा,अहिंसा रहती थी……तब देशहित गौण रहता था,अहिंसा को ही एकमात्र कसौटी मानकर महाराणा प्रताप,शिवाजी,गुरु गोविंद सिंह जैसे महापुरुष तथा राम,कृष्ण जैसे अवतार भी पथभ्रष्ट घोषित किए जा चुके थे सो मजूमदार ने पूछा “शिवाजी का मार्ग मतलब अहिंसक मार्ग”?
सुभाष ने उत्तर दिया “इसका निर्णय आप करें…मेरा उत्तर स्पष्ट है शिवाजी, शिवाजी, शिवाजी”।
आगामी लगभग दो ढाई वर्ष के घटनाक्रम ने साफ कर दिया कि शिवाजी की नीति अपनाने में सुभाष का क्या अभिप्राय था,अपने घर में अंग्रेजों द्वारा नजरबंद किए गए सुभाष चंद्र बोस ने अपने बाल बढ़ाकर घनी दाढ़ी मूछ में भेष बदलकर कैद से वैसे ही भाग निकले जैसे सदियो पहले शिवाजी औरंगजेब की कैद से भाग निकले थे। फिर उन्होंने वह कर दिखाया जो भारत के इतिहास में अभूतपूर्व था…बाद मे नेता जी ने भी वही किया…!
जापान आदि की सहायता से भारतीय युद्ध बंदियों की एक सेना बनाकर अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए पूर्वोत्तर पर आक्रमण… यह उस कांग्रेसी मार्ग का पूर्ण परित्याग था, जिसके लिए अहिंसा की ढपली बजाना राष्ट्र की स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण था…यद्यपि दुनिया की सर्वाधिक हिंसक सरकार यानी अंग्रेज सरकार को इस कारण मजबूती प्राप्त होती थी, यह तथ्य उन्हें कभी विचारणीय प्रतीत नहीं हुआ।
सुभाष जी को आजादी पाने का हर मार्ग स्वीकार था…किसी के लिए उनके मन में तिरस्कार का भाव नहीं था….डॉक्टर हेडगेवार ने 1930 में सत्याग्रह पर जाते हुए अपने सार्वजनिक भाषण में यह शब्द कहे थे “आजादी पाने के लिए अंग्रेजों के बूटों पर पॉलिश करने से लेकर उन बूटों से उनका सिर लहूलुहान करने तक के सारे मार्ग मुझे स्वीकार हैं, कैसे भी हो पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए” इस मामले में इन दोनों महापुरुषों का चिंतन दोनों का वेवलेंथ एक है।
कांग्रेस के नेतागण तो अहिंसा में चिपके रहना चाहते थे। सुभाष का मत था कि अहिंसा एक नीति हो सकती है सिद्धांत नहीं.. और उस पर अत्यधिक बल देना राष्ट्रहित की कुर्बानी साबित होगा और ऐसा हो भी रहा था।
अमेरिका के स्वाधीन सेनानी पेट्रिक हैनरी ने ब्रिटेन में स्वाधीनता पाने के लिए अपने दृढ़ निश्चय युक्त वाणी इस प्रकार व्यक्त की थी “Give me liberty or Give me death” आजादी के लिए ऐसी ही दीवानगी सुभाष में रही है। वह स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र युद्ध अपरिहार्य मानते थे
स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद की भावनाओं से अनुप्राणित सुभाष के लिए भारत मां साक्षात् देवी थी जगन माता थी दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती का रूप थी वे उसे दिव्य माता यानी के डिवाइन मदर पुकारते थे अनुभव करते थे।
इसलिए जब गांधी ने जिन्ना के साथ 19 दिन की वार्ता के बाद 1944 में भारत के विभाजन को सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान कर दी थी तो सुभाष ने बर्मा से प्रसारित अपने आजाद हिंद रेडियो पर 12 सितंबर 1944 को दिए गए भाषण में चेताया था “There should be no compromise with the league or the British, Our divine Motherland can not be cut up” (लीग अथवा अंग्रेजों से कोई समझौता नहीं होना चाहिए हमारी माता काटी नहीं जा सकती) देश के बंटवारे के घोर विरोधी थे ।
यह भारत का दुर्भाग्य रहा कि आजादी हासिल हुई आजाद हिंद फौज की गतिविधियों के कारण…किंतु सत्ता मिली उनको…जो इस संघर्ष में कहीं शामिल नहीं थे बल्कि इसके विरोधी थे…!!
लेखक – अजय मित्तल जी, (संपादक, राष्ट्रदेव पत्रिका)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती, 23 जनवरी को प्रति वर्ष #पराक्रम_दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय भारतीय मानस की #नेताजी के प्रति श्रद्धा का समेकित प्राकट्य है…इस भावपूर्ण निर्णय के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का हार्दिक आभार।
#वंदेमातरम्
#Ajit_Singh
साभार:अजय मित्तल तथा अजीत सिंह-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)