www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

बागेश्वर धाम वाले शास्त्री जी अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं और आप ?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Survesh Kumar Tiwari:
नालंदा! तात्कालिक विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय! कहते हैं, संसार में तब जितना भी ज्ञान था, वहाँ सबकी शिक्षा दीक्षा होती थी। सारी दुनिया से लोग आते थे ज्ञान लेने… बौद्धिकता का स्तर वह कि बड़े बड़े विद्वान वहाँ द्वारपालों से पराजित हो जाते थे। पचास हजार के आसपास छात्र और दो हजार के आसपास गुरुजन! सन 1199 में मात्र दो सौ सैनिकों के साथ एक लुटेरा घुसा और दिन भर में ही सबको मार काट कर निकल गया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक और उनके बीस हजार छात्र मात्र दो सौ लुटेरों से भी नहीं जूझ सके। छह महीने तक नालंदा के पुस्तकालय की पुस्तकें जलती रहीं।
कुस्तुन्तुनिया! अपने युग के सबसे भव्य नगरों में एक, बौद्धिकों, वैज्ञानिकों, दार्शनिकों की भूमि! क्या नहीं था वहाँ, भव्य पुस्तकालय, मठ, चर्च महल… हर दृष्टि से श्रेष्ठ लोग निवास करते थे। 1455 में एक इक्कीस वर्ष का युवक घुसा और कुस्तुन्तुनिया की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गयी। सबकुछ तहस नहस हो गया। बड़े बड़े विचारक उन लुटेरों के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते रहे, और वह हँस हँस कर उनकी गर्दन उड़ाता रहा। कुस्तुन्तुनिया का पतन हो गया।
हम्पी! दक्षिण भारत के सबसे यशश्वी साम्राज्य विजयनगर की राजधानी। वैसा वैभवशाली नगर क्या ही होगा कोई। बिट्ठल मन्दिर के खंडहर तक की दशा यह कि अलग अलग स्तम्भों पर बजाने से अलग अलग वाद्ययंत्रों के स्वर निकलते। अंदाजा लगाइए विज्ञान का, कलात्मकता का… पर 1565 में चार बर्बर पड़ोसी राज्य मिल कर आक्रमण किये। युद्ध में इधर के भी कुछ सेनानायक मिल गए उनसे। दक्षिण भारत की सर्वश्रेष्ठ सेना पराजित हुई और बर्बरों ने भारत के उस सबसे सुंदर नगर को फूँक दिया। कई महीनों तक उस नगर को लूटा गया, और समूची कलात्मकता को तहस नहस कर दिया गया। तनिक सोचिये, लूट कर तो उन्हें धन का लाभ होता था, पर तोड़ने से क्या मिलता था? कुछ नहीं! बस उनका मन हुआ तो तोड़ दिया।
इतिहास छोड़िये! दिल्ली वाले डॉ नारंग! उच्च शिक्षित, सभ्य, सम्पन्न व्यक्ति। कुछ उदण्ड लड़कों का दिमाग खराब हुआ तो दस मिनट में पीट पीट कर मार दिया। डॉक्टर साहब का ज्ञान, बौद्धिकता, तर्क सब धरे रह गए और…
दोस्त! सुनने में तनिक बुरा लगेगा, पर इतिहास पढिये या वर्तमान, बौद्धिकता सदैव बर्बरों असभ्यों के आगे भयभीत हो कर पेशाब कर देती है। तार्किक होना, बैद्धिक होना, वैज्ञानिक होना बहुत बड़ी बात है, पर यह भी सही है कि असभ्यता सदैव तर्कों का बलात्कार कर देती है।
तार्किक होना बहुत अच्छी बात है, पर यदि अपने कालखंड की असभ्यता से जूझने की योजना नहीं आपके पास तो आपके सारे तर्क व्यर्थ हैं। आप से बेहतर है वह व्यक्ति, जो तार्किक भले न हो, पर अपने समय की ज्वलंत समस्याओं से जूझ रहा है और सफल भी हो रहा है।
बागेश्वर धाम वाले शास्त्री जी देवता नहीं हैं, सामान्य मनुष्य ही हैं। उनमें कुछ मानवीय कमजोरियां भी हो सकती हैं। सम्भव है कि बौद्धिक तर्कों की कसौटी पर वे खरे न भी उतरें। फिर भी, वे अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं। और यही बात उन्हें बड़ा बनाती है। वे किससे लड़ रहे हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है न?
हम बाबा के भक्त नहीं हैं, पर फैन जरूर हैं। जय हो बाबा की।

साभार: सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)

Leave A Reply

Your email address will not be published.