Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
पिछले दिनों जो दिल्ली मे हुआ वो व्यवस्थापिका के लिए शर्मनाक है । वही इस मामले मे न्यायायिक व्यवस्था का एक अंग वकील भी जुड़े है । जब दिल्ली उच्चन्यायालय ने संज्ञान लेते हुए न्यायिक जांच के आदेश दे दिए और छै हफ्ते मे जांच की समय सीमा तय कर दी, फिर इस तरह की घटनाये दुर्भाग्य पूर्ण है । कानून के रखरखाव करने वाले ही उसे अपने हाथ मे ले ले, इससे ज्यादा दुखद स्थिति क्या हो सकती है?
एक मामूली से पार्किग का यह वीभत्स रूप! इसका अंदाजा भी नही रहा होगा । स्थिति यह है कि कोई पीछे हटने को तैयार नही है । इसे इन्होंने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है । वही अब इनके संगठन भी मैदान मे आ गये है ।
पर जो मीडिया दिखा रहा है उसकी उम्मीद देश को नही थी । पुलिस से गलती हुई कि नही अब यह न्यायिक जांच का विषय था । उसे कोर्ट सजा दे देती ,पर अब कोई इससे पीछे हटने को तैयार ही नही है । हल तो बातचीत से ही संभव है । अफसोस दोनो के संगठन ही आमने-सामने हो गये है ।
एक बात तय है गलतियाँ दोनो तरफ से हुई है । यह तो अच्छा है कि कैमरा झूठ नही बोलता, इसलिए जिसने जैसा किया है वो कैमरे मे कैद हो गया है । इसलिए इससे कैसे निजात पाया जाये ये समझ से परे है । वकील लोग जिन कैमरे के दृश्य को अपना ऐविडेंस बनाते है वही एविडेंस आज उनके खिलाफ भी बना हुआ है । जहा तक संगठन की बात है दोनो अपनी ताकत का ऐहसास कराना चाहेंगे ।
अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो जो भी दोषी हो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है । यही समस्या का निदान है । अगर कोई पद आ जाये तो इसका मतलब यह भी नही की उन्हे कानून तोड़ने का लाइसेंस मिल गया है । पुलिस की ये नाराजगी एकएक नही हुई है । यह आक्रोश काफी पहले से है ,बस एक घटना का ही दरकार थी । इस मामले मे पुलिस वालो ने अपनी शांति पूर्ण से हड़ताल की । अब जो भी मीडिया के पास है उसे जांच मे लाकर दोषीयो को सजा देना ही न्याय होगा । दोषी कौन है? किस पद पर है? कितना भी बड़ा हो उन पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य मे इस तरह की घटनायओ की पुनरावृति न हो ।
जिन लोग की जिम्मेदारी है कि कानून का पालन करवाए तो उनकी जिम्मेदारी और बढ जाती है । कुल मिलाकर अब इस मामले पटाक्षेप होना चाहिए । वही यह भी कोशिश होनी चाहिए कि ये दोनो फिर से पुनः सौहार्द्रता से रहे।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)