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शहीद कैप्टन अंशुमान की पत्नी स्मृति सिंह की पीड़ा के आगे हमारा सारा ज्ञान फर्जी क्यों है?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
कल राष्ट्रपति के हाथों सम्मान ग्रहण करती कैप्टन अंशुमान की पत्नी स्मृति सिंह और उनकी माता का वीडियो देखा। मैं ही क्या, उस वीडियो को देखने के बाद हर सभ्य व्यक्ति के अंदर एक टीस उभर आई होगी। अभी बच्ची सी तो है वह लड़की! विवाह को शायद छह महीने हुए थे कि एक दिन…

गहन पीड़ा पसरी हुई थी उसके मुख पर, घनघोर उदासी! उसका दुख वही जानती होगी, हमारा सारा आंकलन, सारा ज्ञान फर्जी है उसके आगे। आँसू बार बार आंखों तक आ कर रुक जा रहे थे, रुलाई का आवेग बार बार होठों तक आ कर ठहर जा रहा था। जाने कैसे रोक रही थी वह। रुलाई को रोक लेना भी किसी युद्ध से कम नहीं होता। वह एक सैनिक की पत्नी थी, उसे अपने हर युद्ध को जीतना था शायद… मन को मार कर भी…

आज का अखबार बता रहा है, उनका प्रेम विवाह था। कॉलेज के दिनों में दोनों एक दूसरे को पसन्द आये थे। लाइफ सेट होते ही परिवार की सहमति से विवाह किया। कितने प्रसन्न रहे होंगे न? इस दिन दो घण्टे पहले ही दोनों की बात हुई थी, भविष्य को लेकर चर्चा… नया घर, बच्चे… सबसे ज्यादा इस विषय पर बात हुई कि आज से पचास साल बाद हमारा जीवन कैसा होगा? कुछ महीने पूर्व के ब्याहे बच्चों की बातचीत कितनी मधुर रही होगी न? लेकिन दो घण्टे बाद ही फोन आया कि…

मैं तब से सोच रहा हूँ, अपने घर में मुलायम बिस्तर पर पसर कर दुनिया जहान का विमर्श उठाने वाले हमलोगों पर जाने कितने अंशुमानों का कर्ज है न? जाने कितनी स्मृतिओं के ऋणी हैं हम! अधिकांस को तो हम जानते भी नहीं। हम अपने घरों में सुख से सो सकें इसके लिए रोज ही कोई अंशुमान अपनी आहुति देता है और कोई स्मृति जीवन भर के लिए अपने सुखों का त्याग करती है। हम याद रखें न रखें, हम जानें न जानें, हम अपने माथे पर असंख्य लोगों का ऋण ले कर जी रहे हैं।

उस स्त्री के मन के किसी कोने से यह सन्तोष भी उभरता होगा कि राष्ट्र के लिए बलिदान देने वाले सैनिक की पत्नी हूँ। यह भी, कि हीरो था मेरा पति! जलते बंकर में घुस कर अपने अनेक साथियों को सुरक्षित निकाल लाने वाला नायक! संसार में कितने लोग हैं जो दूसरों की रक्षा के लिए स्वयं की बलि देने का साहस कर पाते हैं। ऐसे योद्धाओं का अपना होना भी सन्तोष का विषय तो है ही… कौन जाने, हम अपने सन्तोष के लिए उसके सम्बंध में ऐसा सोच कर मन को बहलाते हों। कोई भी बात, कोई भी तर्क, कोई भी बहाना, एक युवक की मृत्यु का दुख कम नहीं कर सकता, यह भी तो सच ही है।

मैं क्या कहना चाह रहा हूँ, यह मुझे ही नहीं पता! उस वीडियो को देखने के बाद एक ‘आह!’ बसी हुई है मन में… एक टीस सी है… और यह टीस ही हमारी ओर से श्रद्धांजलि है।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार

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