बचाएं इन जादुई करामाती मधु मक्खियों को क्योंकि बिना इनके धरती पर जीवन संभव नहीं
"अंतरराष्ट्रीय जैविक विविधता दिवस" पर डॉ राजाराम त्रिपाठी का विशेष लेख।
Positive India:Rajaram Tripathy:
“जैव विविधता” के मुद्दों के बारे में समूचे विश्व में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए 22 मई को “अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस” मनाया जाता है। इसी तारतम्य में इसी हफ्ते, 20 मई को समूचा विश्व में “विश्व मधुमक्खी दिवस”भी मनाया गया।
वैसे तो आजकल, नित्य दिन-प्रतिदिन, किसी न किसी “विशिष्ट-दिवस” की घोषणा होते ही रहती है। कभी-कभी तो बेचारे एक ही दिवस पर तीन-तीन “राष्ट्रीय-दिवस” और “विश्व दिवस” एक साथ ही सवार हो जाते हैं। तो हम इससे परेशान होकर एक बार यह सोच सकते हैं कि यह अब आखिर ये कैसे दिन आ गए हैं, जब पेड़ पौधों, कीड़े मकोड़ों, कीट पतंगों का भी दिवस मनाया जाने लगे हैं।
पर हकीकत में ऐसा है, इस पृथ्वी पर मौजूद हर वनस्पति जीव जंतु का अपना-अपना महत्व है। अंधाधुंध दोहन के चलते,आज देश के जंगलों से कई दुर्लभ वनौषधियां विलुप्त हो गई हैं,और 32 से अधिक विलुप्तप्राय वनौषधियां “अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की पुस्तक” (आईयूसीएन) ‘रेड डाटा बुक’ में शामिल हो गई हैं। रेड-डाटा लिस्ट 2020 के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में 40,468 पेड़-पौधों की प्रजातियों को वर्तमान में सरंक्षित करने की आवश्यकता है। इसमें से 16 ,460 पादप प्रजातियां अति- दुर्लभ श्रेणी में है। इसी प्रकार भारत में 2063 पेड़-पौधों की प्रजातियां संकटग्रस्त है, जिनमें से 428 अति दुर्लभ हैं।भारत की गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के पौधों और जानवरों की 132 प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया ।
इसके दूरगामी परिणामों को देखते हुए, यह स्थिति बहुत ही गंभीर रूप से खतरनाक कही जा सकती है। इस ग्रह का एक एक पौधा 1 – 1 कीट पतंगे तक सभी इस पर्यावरण चक्र की महत्वपूर्ण है जिससे हैं इस श्रंखला की एक कड़ी में टूटने पर पूरी श्रृंखला ही धीरे-धीरे बिखर जाएगी।
इसे हम पृथ्वी के जैव विविधता परिवार के एक उपेक्षित से सदस्य, एक कीट, ‘मधुमक्खी’ के जरिए समझने की कोशिश करेंगे। दरअसल बहुत करामाती होती है यह यह मक्खी।
इसी के संबंध में, हमारे प्राचीन अर्थशास्त्री कौटिल्य अर्थात चाणक्य ने कहा था कि “राजा को प्रजा से उसी तरह टैक्स लेना चाहिए जिस तरह मधुमक्खियां फूल से थोड़ा सा पराग लेती है लेकिन फूल को बीज बनाने की शक्ति देती है।”
मधुमक्खियां केवल शहद नहीं बनाती लेकिन बल्कि संपूर्ण वनस्पति जगत में सबसे महत्वपूर्ण है कार्य परागण की क्रिया। और कुछेक को छोड़कर, लगभग समस्त वनस्पतियों में परागण की क्रिया बिना मधुमक्खियों के संभव नहीं है। वैज्ञानिकों के अध्ययन का एक निष्कर्ष यह बताता है, कि हमारे ग्रह से अगर मधुमक्खियां समूल रूप से समाप्त हो जाएंगी तो केवल सात वर्षों के भीतर ही इस खूबसूरत नीले ग्रह से समस्त जीवन ही समाप्त हो जाएगा। जैव विविधता के संरक्षण संवर्धन हेतु केवल सरकार का मुंह ताकने से कुछ नहीं होगा, इसके लिए हम सबको कमर कसनी होगी।
जैव विविधता को बचाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी कई अच्छे प्रयास हुए हैं। बस्तर जिले में “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” के द्वारा पिछले 25 वर्षों में लगभग 7 एकड़ क्षेत्र में 400 से ज्यादा दुर्गा भवन औषधियों को संरक्षित संवर्धित किया जा रहा है। बड़ी बात यह है कि, यह कार्य अपनी जमीन पर, अपने बूते एक प्राकृतिक जंगल उगाकर, वन औषधियों का संरक्षण संवर्धन उनके नैसर्गिक रहवास (Natural Habitat) में किया जा रहा है। इस समूह के द्वारा, यहां पर मधुमक्खियों के जरिए सत्तर से अधिक प्रजाति के दुर्लभ “औषधीय पौधों के फूलों” के पराग से बेहद खास गुणकारी और अद्वितीय अमृततुल्य शहद तैयार किया जाता है। सचमुच अमृत ही तो तैयार करती हैं ये शहद की करामाती मक्खियां। हालांकि इस अत्यंत गुणकारी शहद का उत्पादन अभी बहुत थोड़ी सी मात्रा में ही हो पा रहा है, पर वर्तमान परिपेक्ष्य में इसकी महती आवश्यकता को देखते हुए इसकी गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए, इसे और बढ़ाए जाने की कोशिशें भी जारी है। यूं तो जैविक खेती तथा वन औषधियों की खेती का काम वहां 25 पच्चीस वर्षों से हो रहा है, और इन गतिविधियों से 400 से अधिक आदिवासी परिवारों को रोजगार मिला हुआ है शहद उत्पादन का कार्य पिछले कुछ वर्षों में ही शुरू हुआ है। इस औषधियुक्त शहद की भारत में ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार विदेशों में भी भारी मांग है। इस कार्य को आगे बढ़ा कर बस्तर जैसे वन क्षेत्र के लाखों आदिवासियों परिवारों को रोजगार दिया जा सकता है।
पर्यावरण तथा जैव विविधता के संतुलन को मनुष्य ने जब जब छेड़ा है, तब तब मानव जाति ने इसकी बड़ी बड़ी कीमत चुकाई है । आज जब कोरोना महामारी से पूरा विश्व हलाकान है, और विश्व के सारे वैज्ञानिक भले कोरोना की दवाइयों तथा टीके के प्रभावों को लेकर एकमत नहीं हैं, पर इस एक बात को लेकर पूरा विश्व का चिकित्साजगत तथा वैज्ञानिक समुदाय एकमत हैं कि, मनुष्य अपनी “समग्र रोग प्रतिरोधक क्षमता” (Immune power ) के जरिए ही इसे पूरी तरह से हराया जा सकता है। और यह तो सदियों से अनुभूत तथा स्थापित तथ्य है ही, शुद्ध नैसर्गिक शहद हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में कारगर तथा प्रबल सहायक है।
यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि खेतों में हो रहे अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग के चलते लाखों प्रजाति के कीट पतंगें, चिड़िया, मछलियां, मधुमक्खियां आदि मर रही हैं। मोबाइल की 2G, टू जी,3G थ्रीजी के टावरों से प्रसारित तीव्र विद्युत चुंबकीय तरंगों के दुष्प्रभाव से गिद्ध तथा गौरैया जैसे पक्षी तो विलुप्त प्राय हो गए हैं। वहीं वर्तमान में बहुचर्चित मोबाइल की 5G फाइव जी की तीव्र तरंगों के बारे में कई वैज्ञानिकों का दावा है कि, यह मनुष्य शरीर के लिए बेहद घातक है। हाल के परीक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों का है कि 5 जी की निर्धारित क्षमता से अधिक तीव्र शक्ति की विद्युत चुंबकीय तरंगों की तीव्र मारक क्षमता के कारण मनुष्यों में हृदयाघात रक्तचाप रक्त के थक्के जमने आदि कई शारीरिक सारी समस्याएं हो रही हैं। कोरोना वायरस के लगातार बदलते स्वरूपों के साथ 5G फाइव जी की विद्युत चुंबकीय तरंगों की मारक क्षमता के बहु गुणित होने का दावा भी कुछ संगठन कर रहे हैं। इसलिए इन गंभीर आशंकाओं पर विशेषज्ञ चिंता व्यक्त कर रहे हैं। अतएव इस तकनीकी के मनुष्य, अन्य जीव-जंतुओं, पेड़ पौधों एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले परिणामों की शीघ्र अति शीघ्र जरूरी जांच पड़ताल व गहन शोध किया जाना जरूरी है।
विश्व के गणमान्य वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मोबाइल के 2-3 जी की तरंगों के कारण हमारी परम मित्र मधुमक्खियों के अस्तित्व पर ही महा संकट आन पड़ा है, और वह दिन दूर नहीं है जब मधुमक्खियों की संपूर्ण प्रजाति किस ग्रह से विलुप्त हो सकती है। और अगर मधुमक्खियां नहीं रहीं तो मानव जीवन भी खत्म हो जाएगा ,क्योंकि उनके परागण की वजह से ही खाद्य पदार्थ हमें मिलते हैं।
चीन में अचानक गौरैया की खत्म होने के कारण कई क्षेत्रों में अकाल की स्थिति आ गई थी। अर्थात पर्यावरण तथा जैविक विविधता में असंतुलन से इस खूबसूरत नीले ग्रह संपूर्ण जीवन चक्र प्रभावित होगा, उसके दुष्प्रभाव से मनुष्य चाह कर भी अछूता नहीं बच सकता। कई असाध्य रोगों को दूर करने वाली जड़ी बूटियां अब जंगलों से विलुप्त हो गई हैं। वनौषधि की एक भी प्रजाति यदि पृथ्वी से विलुप्त हो जाती है तो विश्व के सारे वैज्ञानिक मिलकर भी उसे दोबारा नहीं बना सकते ।
यानी कि यह समग्र जैवविविधता हमारे जीवन तथा बेहतर भविष्य के लिए सतत काम में जुटी हुई हैं, इसलिए इस दुनिया को अब हमें बेहतर बनाना ही होगा।
इसलिए आइए हम मनुष्य जाति को बचाए रखने के लिए इस खूबसूरत ग्रह की बेहद खूबसूरत जैव विविधता को हर हाल में बचाए रखें।
लेखक:डॉ राजाराम त्रिपाठी-राष्ट्रीय संयोजक
(अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा)