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सावरकर और गाँधी

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
एक लीगी शायर ने उन दिनों एक शेर लिखा था,
भारत में बलाएँ दो ही हैं एक सावरकर एक गाँधी है
एक झूठ का चलता झक्कड़ है एक मक्र की उठती आँधी है
यानी सावरकर को झूठा और गाँधी को मक्कार बताया गया है । मेरी इन दोनों निष्कर्षों से घोर असहमति है पर यह शेर इन दोनों के बारे में मुस्लिम लीग की धारणा को प्रकट करता है । सावरकर और गाँधी दो अलग-अलग ध्रुव हैं एक के समर्थक को दूसरे के विरूद्ध खड़ा होना पड़ेगा । यह संयोग नहीं है कि जब मोदी जी ने संसद में सावरकर के चित्र का अनावरण किया तो उनकी पीठ के ठीक पीछे गाँधी का चित्र था ।

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दो और ध्रुव भी थे जिन्ना और अंग्रेज जिन्होंने इन दो विपरीत ध्रुवों का लाभ उठा कर देश बाँट दिया और आज सावरकर और गाँधी के समर्थक आपस में ब्लेम गेम खेल रहे हैं । आज भी सावरकर और गाँधी के समर्थक बला ही हैं इनके झगड़े का लाभ उठाने की घात में आज भी बहुत से विभाजनकारी तत्व तत्पर बैठे हैं । मोदी जी गाँधी और सावरकर को साथ लेकर चलने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं पर यह संभव नहीं प्रतीत होता है ।

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सावरकर और गाँधी की पहली मुलाक़ात लंदन में हुई थी । तब गाँधी दक्षिण अफ़्रीका में अपने संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने इंग्लैंड आये हुए थे और सावरकर के यहाँ भोजन पर निमंत्रित थे । सावरकर उस समय झींगे फ़्राई कर रहे थे , गाँधी ने बात शुरू की तो सावरकर ने कहा पहले भोजन कर लिया जाये । गाँधी ने कहा कि मैं शाकाहारी हूँ । सावरकर ने उपहास किया कि बिना गोश्त खाये अंग्रेजों से जंग कैसे संभव है । कुछ ही दिन पहले सावरकर टोली के सदस्य मदनलाल धींगरा ने भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार कर्ज़न वाइली की लंदन में हत्या कर दी थी । भारत में खुदीराम बोस और अन्य क्रांतिकारियों की फाँसी के बदले में यह हत्या की गई थी । बहरहाल गाँधी सावरकर की हिंसक सक्रियता की विचारधारा से सहमत नहीं हुए और ख़ाली पेट लौट आये । सावरकर को संभवतः आशा नहीं रही होगी कि इतने वर्षों तक विदेश में रहने वाला कोई व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी भी हो सकता है वरना वे कुछ शाकाहारी भोजन की भी व्यवस्था गाँधी के लिए ज़रूर रखते ।

इधर भारत में सावरकर के द्वारा स्थापित संगठन अभिनव भारत के सदस्य अनंत कन्हेरे ने नासिक के कलेक्टर की हत्या कर दी । जाँच में पता चला कि हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्टल सावरकर ने लंदन से भिजवाई है । लिहाज़ा सावरकर गिरफ्तार कर लिए गए और जहाज़ से उन्हें भारत भेजा गया । फ़्रांस के तट के नज़दीक पहुँचने पर सावरकर बाथरूम के पॉट से निकल कर भाग निकले । सावरकर ने समुद्र तैर कर पार किया और चार सौ मीटर दौड़ भी गए । फ़्रांसीसी सिपाहियों से उन्होंने शरण मांगी लेकिन तब तक अंग्रेज पहुँच गये और सावरकर को जबरन छुड़ा लाए । बाद में फ़्रांस और इंग्लैंड में सावरकर को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट में मुक़दमा भी चला । सावरकर का यह मुक़दमा इंटरनेशल लॉ के पाठ्यक्रम में आज भी पढ़ाया जाता है , मैंने भी पढ़ा था ।

जहाज़ से भागने के दुस्साहस ने सावरकर को अंग्रेजों की दृष्टि में बेहद ख़तरनाक क्रांतिकारी बना दिया । भारत आने पर उन पर मुक़दमा चला और दो बार आजन्म कारावास की सज़ा दी गई जो एक के बाद एक चलनी थी । सावरकर का क्रांतिकारी जीवन यहाँ समाप्त होता है और काला पानी की यातनाओं का दौर शुरू होता है ।

क्रमशः

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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