कोरोना की आत्म कथा- ‘सैर भारत की
कोरोना पर राही के व्यंग्य बाण।
Positive India:Rajesh Jain Rahi:
“कोरोना की आत्म कथा- ‘सैर भारत की”
मैं कोरोना, जिसे आप लोग महामारी कहते हो, आज अपनी आत्मकथा आपको सुनाती हूँ।
चीन में मेरा जन्म हुआ। ऑपरेशन से या प्राकृतिक रूप से ?
यह मैं अपने श्रीमुख से नहीं बता सकती। चीन में ही मैं पली बढ़ी।
बहुत दुलार मिला मुझे यहाँ। जैसे-जैसे मैं बड़ी होने लगी मेरा मन देश-विदेश की सैर करने को मचलने लगा। मैंने इटली, फ्रांस, स्पेन, अमेरिका का बड़ा नाम सुना था। मैं चुपचाप यहाँ के नागरिकों के साथ हवाई यात्रा करती हुई इन देशों में पहुँच गई। सुना था अमेरिका में बडी सख्त जाँच होती है लेकिन यहाँ कोई मुझे नहीं पहचान सका। मैं बड़े आराम से यहाँ घूमती रही।
भारत एक उदार, सहिष्णु, धर्म निरपेक्ष देश है। यहाँ लोगों को मिलना-मिलाना, उत्सव मनाना बहुत पसंद है। तीज त्योहार भी यहाँ बहुत होते हैं। मेरा मन भारत की सैर को मचलने लगा परन्तु यहाँ के वर्तमान शासक बड़े सख्त मिले। मैं भी बड़ी चतुर थी, मैंने विदेशों में बसे भारतीयों से दोस्ती की। इनके साथ साथ मैं भारत पहुँची। जाँच हुई एयरपोर्ट पर, तापमान देखा गया, सब इतने समझदार थे बुखार उतरने की गोली खाकर, तापमान नियंत्रित कर, मुझसे दोस्ती न होने का प्रमाण देकर अपने देश उतर गए। मैं मजे से दिल्ली आ गई।
कुछ विदेशी नागरिक ,भारत जिन्हें संदिग्ध कहता है बड़े प्यार से – ‘चलो कोरोना बहन’ कहकर मुझे अपने साथ भारत ले आये।
पासपोर्ट अधिकारी अतिथि देवो भव की मुद्रा में थे।
मैं भारत आ गई।
अहा देश की राजधानी दिल्ली में कितना बड़ा जमावड़ा था। यहाँ तो माशूका की तरह मेरी खातिर की गई। मेरा परिवार बड़ा हो गया। यहाँ मैंने हजारों बच्चों को जन्म दिया। ये बच्चे घुमन्तू मिजाज के थे। बच्चों को बड़ा प्यार मिला, ये उदंड हो गए। *भारत में इन्हें कोई अनुशासित नहीं कर सका।*
इस बीच शासकों ने मुझे अवैध घोषित कर दिया। मेरी धरपकड़ के लिए पूरे देश मे लोकडाऊन लगा दिया।
लेकिन जाको राखे साइयां मार सके न कोई।
मेरे बच्चे तब तक पूरे देश में फैल चुके थे। मुंबई, इंदौर, कोलकाता, चेन्नई, जयपुर सभी जगह ये बच्चे फैल गए। *_इन्होंने मेरा बड़ा काम किया। बीजारोपण कर दिया।_*
शासकों ने बहुत कोशिश की मगर मुझे साथी मिलते चले गए। प्रवासी मजदूरों ने बहुत दुत्कारा मुझे। भूखे भी रहे। मगर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती। एक दिन मैं इनके बीच घुस ही गई। ये बेचारे पैदल निकल पड़े क़स्बों की तरफ। मैं साथ साथ रही।
गाँधी जी कहते थे-भारत गाँवों का देश है।
मेरा मन गाँव जाने का है।
चार लोकडाऊन आये, मैं बढ़ती ही गयी।
अब तो अनलॉक वन आ रहा है। *आ रही हूँ मैं आपसे मिलने। स्वागत करेंगे न मेरा।*
.. आपकी कोरोना।
लेखक:राजेश जैन राही-रायपुर