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संसद ने एनआईए संशोधन विधेयक को दी मंजूरी

शाह ने दिया कानून का दुरूपयोग नहीं होने का आश्वासन

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पॉजिटिव इंडिया:नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) विदेशों में आतंकवादी घटनाओं में भारतीय नागरिकों के प्रभावित होने की स्थिति में ‘एनआईए’ को मामला दर्ज कर अन्य देशों में जाकर जांच करने का अधिकार देने वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को संसद ने बुधवार को अपनी मंजूरी दे दी। साथ ही, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया कि इस कानून का कतई दुरूपयोग नहीं किया जाएगा।राज्यसभा में विधेयक पर हुई चर्चा के जवाब में गृह मंत्री ने यह आश्वासन दिया। उन्होंने यह भी भरोसा जताया कि विश्व में जहां पर भी भारतीयों के खिलाफ आतंकवाद का अपराध होगा, एनआईए उससे निबटने में सक्षम है।
उच्च सदन ने गृह मंत्री के जवाब के बाद ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अधिकरण संशोधन विधेयक 2019’ को सर्वानुमति से पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
हालांकि, गृह मंत्री के जवाब से पहले वाम दलों ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग करते हुए सदन से वाक आउट किया।
इससे पहले शाह ने सदस्यों से कहा कि सदन में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए जिससे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की साख कम हो।
उन्होंने सदन को आश्वासन दिया कि मोदी सरकार इस कानून का कतई दुरूपयोग नहीं होने देगी। उन्होंने कहा,विदेश में कहीं भी आतंकवादी घटनाओं में भारतीय नागरिक हताहत होते हैं, हमारे दूतावास प्रभावित होते हैं, जानमाल को नुकसान होता है, हमारे पास कानूनी कार्रवाई का अधिकार नहीं है। हमारे अधिकारी वहां जाते हैं तो पूछा जाता है कि आपके पास कानून कहां है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
शाह ने राजनीति के लिए एनआईए को निशाना बनाने की प्रवृत्ति के प्रति आगाह करते हुए कहा,इतने संवेदनशील मुद्दे पर केवल राजनीति के लिए एजेंसी को नीचा लाया (दिखाया) जाए और दुनिया के सामने इसकी साख को कम किया जाये, मुझे लगता है कि यह ठीक नहीं होगा।
शाह ने एनआईए के कामकाज की दक्षता का जिक्र करते हुए कहा कि 2014 से 17 जुलाई 2019 तक कुल 195 मामले दर्ज किए गये। इनमें से 129 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गये। ऐसे 44 मामलों में अभियोजन पक्ष ने अपना काम पूरा किया और अदालत के फैसले आ गये हैं। 41 मामलों में दोषियों को सजा हुई। इनमें 184 आरोपियों को दोषी ठहराया गया। उन्होंने कहा कि ये सारे आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े मामले थे। शाह ने समझौता विस्फोट मामले का जिक्र करते हुए कहा पूर्व की संप्रग सरकार के शासनकाल में दाखिल किया गया आरोपपत्र इतना कमजोर था और उसमें साक्ष्यों की इतनी कमी थी कि सारे आरोपियों को अदालत को छोड़ना पड़ गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इसमें राजनीतिक बदले की भावना से काम किया गया।
गृह मंत्री ने कहा कि समझौता ट्रेन विस्फोट मामले में अगस्त 2012 को जब आरोपपत्र दाखिल किया गया था, उस समय केन्द्र में संप्रग की सरकार थी। सजा होना, न होना आरोपपत्र पर निर्भर होता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में कोई सबूत नहीं था और कोरी राजनीतक बदले की भावना के साथ यह मामला दर्ज किया गया था।
शाह ने चर्चा के दौरान सपा के रामगोपाल यादव द्वारा आतंकवाद से जुड़े मामलों में काफी समय जेल में रहने के बाद अदालतों द्वारा लोगों को निर्दोष ठहराये जाने वाले व्यक्तियों के मानवाधिकार का मुद्दा उठाए जाने का भी जिक्र किया। गृह मंत्री ने कहा कि समझौता मामले में शुरू में हमारी एजेंसी ने सात लोगों को पकड़ा। इन लोगों को अमेरिका की एजेंसी की सूचना के आधार पर पकड़ा गया। किंतु बाद में आतंकवाद को एक धर्म विशेष से जोड़ने के लिए अलग से एक मामला बनाया गया।
समझौता विस्फोट मामले में अपील नहीं करने के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि यह नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चलने वाली भाजपा नीत राजग सरकार है। उन्होंने कहा कि एक ऐसी भी सरकार थी जिसमें सरकार, अभियोजन एजेंसी और कानून अधिकारी एक ही कमरे में बैठक कर षड्यंत्र करते थे।
उन्होंने कहा कि जब कानून अधिकारी ने अपनी राय ही नहीं दी तो सरकार समझौता विस्फोट मामले में अपील कैसे कर सकती है? यह काम अभियोजन एजेंसी या सरकार नहीं करती। यह काम कानून अधिकारी की राय पर होता है।
उन्होंने पाकिस्तान द्वारा ऐसा कानून नहीं बनाये जाने के सवाल पर कहा कि जो अंतरराष्ट्रीय दबाव बन रहा है, उसमें पाकिस्तान को कभी न कभी यह कानून बनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमने बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान को (पुलवामा आतंकी हमले का) जवाब दे दिया है।

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