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सामयिक लेखन में यथार्थ का मिश्रण

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Positive India :Raipur,
सामयिक लेखन का अति यथार्थ क्या साहित्य की कोमलता को हर रहा है ? जहाँ तक मेरा मत है कि निश्चित ही इतना यथार्थ साहित्य तो मुझे भी नहीं पचता , अगर यथार्थ के नाम के नाम पर कुछ भी फूहड़ता परोसा जाये ।सामयिकता की आड़ में इतना खुलापन और विकृतियाँ लिखी जाती हैं कि मन में खिन्नता भर जाती है।
प्राचीन साहित्य में भी समकालीन घटनाओं पर लिखा जाता था लेकिन सब कुछ इतना मर्यादित और स्वाभाविकता लिये कि आज भी पढ़ने पर मन आनंदित हो जाता है।
पर आज की युवा पीढ़ी सामयिक परिवेश पर लेखन पढ़ने पर रुचि रखती है।और ये उनके लिये ठीक भी है। इससे उन्हें वर्तमान में हो रही घटनायें या परिवर्तन सच्चाई को दिखाता है। आज की युवा पीढ़ी काल्पनिक बातों पर विश्वास नहीं करती। उन्हें विद्रोही तेवर और किसी भी क़ीमत पर लक्ष्य हासिल करने वाली रचनायें प्रभावित करती है।बदलते साहित्य के दौर में सामयिकता से जुड़ी राजनैतिक मुद्दे या घटनायें अपना असर दिखा रही।
लेखिका: नीलिमा मिश्रा.

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