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मक्खन लाल बिन्द्रू के बेटी के जज़्बे को सलाम

-राजेश जैन "राही" की कलम से-

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क्या यही ईमान उसका, क्या यही पहचान है,
हाथ में बंदूक लेकर, वह लिखे फ़रमान है।

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प्रेम की घाटी हुई छलनी किसी के वार से,
मौन फिर भी हैं दिशाएं, मौन हिंदुस्तान है।

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बेटियों की आँख के आँसू नहीं रुकते मगर,
हर तरफ फैली कुटिल, मुस्कान ही मुस्कान है।

है शहादत को नमन, जज़्बे की है अनुमोदना,
भारती की राह में सब कुछ किया कुर्बान है।

क्या यही इंसानियत का है तकाज़ा बोलिए,
मज़हबों के हाथ में अब ज़ुल्म का सामान है।

लेखक:कवि राजेश जैन ‘राही’, रायपुर

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