साध्वी प्रज्ञा , भगवा आतंकवाद और शहीदो पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले
सब पार्टीयो मे हिंदू बनने की होड़ सी मच चुकी है ।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:भोपाल का चुनाव देश के सबसे बहुचर्चित चुनाव मे से एक हो गया है । अब तो ये हाल है सब पार्टीयो मे हिंदू बनने की होड सी मच चुकी है । कुछ ने तो नर्मदा परिक्रमा भी कर ली जिससे सनातनी हिंदू का ठप्पा लग चुका है । पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भाजपा ने उतारकर मुकाबले को रोचक कर दिया है । दुर्भाग्य से पिछले दिनो साध्वी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए अपने व्यथा मे इतनी व्यथित हो गई कि उसे आभास भी नही रहा कि अब वो राजनीति की नई पारी खेल रही है । यहा इतने प्रोफेशनल राजनीतिज्ञ बैठे है कि आपके एक गलत बयान को लेकर बवंडर मचाने मे माहिर होते है । शहीदो पर घड़ियाली आंसू बहाने मे इनका कोई सानी नही है । शहीदो का मान सम्मान इनके पूरी राजनीति पर आधारित रहता है । पर इसके बहाने इनके द्वारा रचित भगवा आतंकवाद से तो निजात नही मिल सकता । अब मूल मुद्दे पर, रावण विद्वान था पर उसके बुरे काम को आज भी दशहरे के दिन प्रतीकात्मक रूप से जला कर मारते है । राजा दशरथ ने भी धोखे से पानी पीने गये श्रवण कुमार को किसी जानवर के आभास मे शिकार किया, तो उसके माता-पिता ने हृदय से व्यथित होकर श्राप दिया था जो पूरी मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन कर निकले । कभी किसी भी सरकार ने पूछताछ मे किसी आतंकवादी या कुख्यात अपराधी को भी कभी इतना टार्चर किया जितना साध्वी को किया है? साध्वी का तीन चार बार नार्को टेस्ट के बाद भी चार्ज शीट का फाईल न करना क्या नाकामी नही है ? जिन लोगो ने खुले आम बाटला हाउस पर आतंकवादी के मरने पर दहाड़ मार मार कर रोकर शहीद मोहन लाल शर्मा का अपमान किया वो आज साध्वी से हिसाब मांग रहे है । इनमे इतना भी नैतिक साहस नही था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल मे हुए बाटला हाउस पर इस्तीफा लेते ? शहीद शर्मा के पिता इतने व्यथित हुए उन्होंने राशि तक लेने से इंकार कर दिया । यह जरूर है स्व. करकरे अपने फर्ज को निभाते हुए शहीद हुए पर उनके दूसरे कार्यो पर क्यो नही चर्चा की जाये ? अगर किसी के विवादास्पद कार्यो पर बात क्यो नही की जा सकती ? क्यो इससे राजनीति प्रभावित हो रही है ? क्या कभी इतिहास की समीक्षा नही हुई ? क्या कोई भी सरकार पुराने कामो को जांच के दायरे मे नही लाते ? किसी बड़े शासकीय अधिकारी का किसी बड़े राजनीतिक दल के नेता से संबंध, क्या संदेहो को जन्म नही देता ? ये वही दल है जिनके नेता अपने नार्को टेस्ट से भाग रहे है दूसरे तरफ यही लोग तीन बार नार्को टेस्ट कर रहे है । अगर हिम्मत है तो एक बार अपना भी नार्को टेस्ट कराने की सहमति दे । क्या आज इंदिरा गांधी शहीद हुई तो क्या हम उनके द्वारा लगाए गए आपातकाल की बात नही करते ? हर सिक्के के दो पहलू होते है, तो क्या हम अपने राजनीतिक फायदे के लिए एक ही हिस्सा देखे ? जैसे साध्वी जी बता रही है कि उनके साथ इतना जुल्म हुआ, ज्यादाती की गई तो सिक्के के दूसरे पहलू पर स्वर्गीय करकरे के कार्यो की समीक्षा लाजमी है । भगवा आतंकवाद की थ्योरी पर काम करने वालो का नाम उजागर करने का समय आ गया है । और जो जांच मे निर्दोष है तो उन्हे बाईजजत बरी कर देना चाहिए । पर दोषी है तो निर्दोषो को फंसाने और हिंदू धर्म को अपनी राजनीति के लिए बदनाम करने की घिनौनी चाल के लिए कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए । मेरा तो मानना है कि इन लोगो को ही अपने को निर्दोष साबित करने के लिए खुद को ये मांग करनी चाहिए । क्या ये नैतिक साहस है ? अगर साध्वी ने इतना प्रताड़ित होकर अपनी अग्नि परीक्षा दी है तो इसके दसवे हिस्से के प्रताड़ना को ये तथाकथित लोग झेल सकते है । अब तो दूध का दूध और पानी का पानी की जांच होनी चाहिए । ये भी किसी बड़े न्यायाधीश के अंदर मे होनी चाहिए जिससे राजनीति का आरोप न लग सके । उम्मीद है शासन इस पर त्वरित कार्रवाई कर देश को भ्रम की स्थिति से बाहर निकालने मे मदद करेगा । वही साध्वी जी को भी अपने जज्बात पर संयम बरतना होगा ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)