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साधु जैसे दिखने वाले बलराम बोस ममता के अत्याचार के विरुद्ध मुखर प्रतिरोध के प्रतीक बन गए हैं
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
बलराम बोस!
पिछले तीन चार दिनों से साधु जैसे दिखने वाले ये व्यक्ति खूब चर्चा में हैं। मेडिकल कॉलेज में हुए पाप के विरुद्ध बंगाल में चल रहे आंदोलन में जब पुलिस आंदोलनकारियों पर पानी की बौछार कर रही थी, तो ये अडिग खड़े पुलिस को चूड़ी पहन लेने के इशारे करते दिखे थे। वह वीडियो इतना प्रभावशाली है कि हर व्यक्ति इन्हें ढूंढने लगा है। वे अत्याचार के विरुद्ध सभ्यता के मुखर प्रतिरोध के प्रतीक बन गए हैं।
बलराम बोस कलकत्ता के एक सम्पन्न परिवार से आते हैं। उनके परदादा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थे, और उनके दादा पार्षद रहे हैं। करोड़पति होने के बावजूद बलराम बोस ने दस वर्ष पूर्व सन्यास ग्रहण कर लिया था। वे स्वयं को शिवभक्त बताते हैं।
बलराम बोस बताते हैं कि उन्होंने प्रशासन को इशारे से कहा कि सत्ता की गुलामी से मुक्त हो कर तनिक मनुष्य की भांति भी सोच लो। तुम्हारे घरों में भी बेटियां हैं, तुम्हे हमारे साथ खड़ा होना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि मैं मरने को तैयार खड़ा था। पुलिस यदि मार भी देती, तब भी मैं वहाँ से नहीं हटता। वीडियो में यह देखा जा रहा है कि एक समय सचमुच वे अकेले ही खड़े हैं। आसपास के लोग वहां से हट गए हैं।
वर्तमान की तमाम विकृतियों के बाद भी मुझे बंगालियों की जीवटता पर कभी संदेह नहीं रहा। स्वतंत्रता आंदोलन के समय बंगाल के क्रांतिकारियों ने जो जो कारनामे किये हैं, वह अद्भुत है।
सभ्य समाज उपद्रवी नहीं होता। वह एक सीमा तक परेशानियों का शांतिपूर्ण हल निकालना चाहता है। कई बार हम उसके इस व्यवहार को कायरता बता देते हैं, पर सचमुच ऐसा नहीं होता। शांतिपूर्ण हल तलाशने वाले लोग जब लड़ने के लिए उठ खड़े होते हैं तो इतिहास बदल देते हैं।
महाभारत में युद्धिष्ठिर का समझौतावादी व्यवहार हो या भगवान श्रीकृष्ण का बार बार शांति समझौते का प्रयास! यह उनका अधर्म के आगे समर्पण नहीं था, यह परेशानियों का शांतिपूर्ण हल निकालने का प्रयास था। पर अंततः जब वे कुरुक्षेत्र में आये, तो न इच्छामृत्यु के वरदानी भीष्म बचे, न संसार के सर्वश्रेष्ठ योद्धा द्रोण। न महान धनुर्धर कर्ण की उनके आगे टिक सके, न बज्र देह वाले दुर्योधन। सबको मिट्टी चाटनी पड़ी। यही होता है। बर्बरता को अंततः पराजित ही होना होता है।
बंगाल के लिए भी यह जगने का समय है। उन्हें जगना ही होगा। और यह भी तय है कि वे उठ खड़े होंगे। लड़ेंगे, और जीतेंगे।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।