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बहुत हो चुका अब रूस यूक्रेन युद्ध समाप्त होना चाहिए

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
युद्ध वायुसेना नौसेना मिसाइलों और परमाणु बम से नहीं जीते जाते । बमबारी से आप किसी देश को पूरी तरह नष्ट कर सकते हैं लेकिन उस पर क़ब्ज़ा नहीं कर सकते । कव्ज़ा करने के लिए अंततः थल सेना को ही जाना पड़ता है अन्यथा राख के ढेर से भी नया देश जन्म ले लेगा । समय ज़रूर लगेगा लेकिन वह फिर से पहले की तरह उठ खड़ा होगा ।

रूसी सेना के एक जवान को युद्ध के प्रारंभ में यूक्रेनी बुढ़िया ने कुछ सूरजमुखी के बीज दिए थे कि वह उसे जेब में रख ले ताकि जब यूक्रेनी सैनिक उसे मार दें तो यूक्रेन की ज़मीन में फिर से सूरजमुखी उगें और खिलें ।

पुतिन की मोबलाइज़ेशन कॉल को रूसी जनता ने रिजेक्ट कर दिया है यानी यूक्रेन के विरुध्द सेना भर्ती के आह्वान को ठुकरा दिया । किसी भी देश की जनता देश के सम्मान और रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार रहती है । रूसी सेना का स्टालिनग्राद और बर्लिन युद्ध में गौरवशाली इतिहास रहा है पर यूक्रेन? यूक्रेन तो रूस का अंग रहा है । हज़ारों रूसी लोगों की रिश्तेदारियाँ हैं । कोई धार्मिक विवाद भी नहीं है जो युद्ध करके जन्नत मिलने की उम्मीद हो ।

एक बार एक रोते हुए बच्चे को उसकी बुआ चुप करने की कोशिश कर रही थी । बच्चा रोये जा रहा था । बुआ चुपा नहीं पा रही थी तो बच्चा खुद ही बोला कि “का है जो चुपैं ?“ भालू है कि बंदर है कुछ तो बताओ !

बच्चे की माँ उसे इसी तरह बंदर या भालू का डर दिखा कर चुपाती थी । रूस की जनता भी पुतिन से पूछ रही है कि क्या है कि हम यूक्रेन से लड़ें ? कौन सा यूक्रेन हमारे ऊपर आक्रमण कर रहा है ? कोई वजह तो हो कि हम यूक्रेन में जाकर अपनी जान दें ।

नाटो कोई आज से नहीं है द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद नाटो का गठन हो गया था जिसमें कम जनसंख्या और क्षेत्रफल वाले छोटे छोटे देश अमेरिका की छत्रछाया में एकत्र हुए थे । सोवियत संघ का तब सारी दुनिया को कम्युनिस्ट बनाने का घोषित एजेंडा था वह भी बंदूक़ की नोक पर । चीन कांगो पोलैंड पूर्वी जर्मनी सारे के सारे देश बंदूक़ की नोक पर ही कम्युनिस्ट हुए । केरल में ज़रूर दुनिया की पहली कम्युनिस्ट लोकतांत्रिक सरकार स्थापित हुई थी । हंगरी , अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में सोवियत ने ही हस्तक्षेप किया । नाटो ने यूरोप में किसी देश में सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया । सोवियत संघ भी अपने खुद के बोझ से टूटा ।

युद्ध बेहद घिनौनी और आदिम युग की चीज़ है इसे अंतिम विकल्प के रूप में ही आज़माना चाहिए । कोई आक्रमण करें तो अंतिम साँस तक लड़ना चाहिए । कोई आपके अस्तित्व के लिए ख़तरा हो तो उसे आगे बढ़ कर नष्ट कर देना चाहिए । लेकिन यूक्रेन रूस के लिए किसी तरह ख़तरा नहीं है ।

बहुत हो चुका अब कोई सम्मान जनक रास्ता निकाल पर युद्ध समाप्त करना चाहिए ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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