www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

‘रॉयल जेली’ है इंसानों के लिए संजीवनी बूटी

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India: New Delhi मधुमक्खियों की रानी का भोजन ‘रॉयल जेली’ :शाही जेली: इंसानों के कई रोगों को ठीक करने और शरीर को एक नया जीवन देने की क्षमता रखता है।राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य देवव्रत शर्मा ने बताया, ‘रॉयल जेली’ में कई असाध्य रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है। अस्थमा, कैंसर, गठिया, मधुमेह, थॉयरॉयड जैसे रोगों में इसके सेवन से रोगी को भारी लाभ मिलता है। यह रीढ़ की हड्डी के क्षरण के कारण होने वाले लकवा को ठीक करने के अलावा, तंत्रिका तंत्र को दुरस्त करता है और घुटनों में तरलता को बहाल कर गठिया को दूर करने में मदद करता है। अगर इसे कलयुग की ‘संजीवनी बूटी’ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। शर्मा ने कहा कि पुणे के भारतीय विद्या पीठ में मधुमक्खी के प्रोपीलीस, छत्ते, डंक और रॉयल जेली के कई गंभीर रोगों के इलाज के लिए शोध किये जा रहे हैं। इस संस्थान ने अब तक देशी स्तर पर तैयार लगभग 1200 दवाओं का पेटेन्ट भी कराया है। इसके अलावा कई कैंसर शोध संस्थानों में भी मधुमक्खी के इन उत्पादों को उपयोग में लाया जा रहा है।उन्होंने कहा कि संभवत: हमारे पूर्वजों को मधुमक्खियों के तमाम उत्पादों के उपयोग की भरपूर जानकारी थी और कई असाध्य रोगों में इसका इस्तेमाल कर वे बेहद लंबी उम्र प्राप्त करते थे।
शर्मा ने कहा कि आज देश में लोगों को केवल मधुमक्खीपालन से शहद प्राप्ति की जानकारी है लेकिन इसके तमाम उत्पादों के उपयोग के बारे जानकारी नहीं है और उनके उपयोग में लाने के तरीके और इन्हें प्राप्त करने की जररी संरचना उपलब्ध नहीं थीं। उन्होंने कहा कि उन्होंने मधुमक्खीपालन क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध तमाम देशों की यात्रा अपने खर्च पर की और उनके तमाम उपकरणों के बारे में न सिर्फ जानकारी ली बल्कि देश लौटकर डंक, पोलन :परागकण:, रॉयल जेली, प्रोपोलिस :मोमी गोंद: निकालने के उपकरणों को भारतीय तरीके से बनाया और उन्हें निकालने की जानकारी किसानों को दी और उन्हें प्रशिक्षण दिया।रॉयल जेली के बारे में जानकारी देते हुए शर्मा ने कहा देश में शहद उत्पादन करने वाली पालने योग्य दो प्रमुख मक्खियां हैं. ‘एपिस मेलिफेरा’ :जिसे ‘इटालियन बी’ भी कहते हैं,और ‘एपिस सेरिना इंडिका’ :इसे भारतीय मोन भी कहते हैं।इन मधुमक्खियों की हर प्रजाति में तीन प्रकार की मक्खियां प्रमुख हैं. रानी मक्खी :जो सबसे लंबी होती है और इसे मामोन भी कहते हैं और ये सिर्फ अंडे देने का काम करती हैं:नर मक्खी जो सिर्फ रानी मक्खी को गर्भवती करने का काम करती हैं और इनकी आबादी अधिक नहीं होती: तथा श्रमिक मक्खी जो फूलों से पुष्परस :नेक्टर: लाकर अपने छत्ते में उससे शहद बनाती हैं।
श्रमिक मक्खियों की आयु 70 से 75 दिन की होती है जबकि नर मक्खी की आयु 75 से 90 दिन होती हैं जबकि रानी मक्खी की आयु दो से तीन साल तक की होती है। रानी मक्खी सिर्फ रॉयल जेली खाती है जिसे बनाने का काम 12 से 17 दिन की श्रमिक मक्खी ही कर पाती हैं और इससे अधिक उम्र की मक्खियों से रॉयल जेली काफी कम मात्रा में ही प्राप्त होती है। इन्हीं रॉयल जेली को रानी मक्खी के अंडे में से रानी बनने वाले अंडे के लार्वा को खिलाया जाता है जो आगे चलकर रानी मधुमक्खी बनती हैं।शर्मा ने बताया कि मधुमक्खियों में सात ग्रंथियां होती हैं जिसमें से एक ग्रंथी में रॉयल जेली बनती है जो देखने में पतले दही के समान होती है और उसका स्वाद भी लगभग दही की तरह होता है। उन्होंने कहा कि छत्ते में जो बड़ा घर होता है वह रानी मधुमक्खी के अंडे का घर होता है जिसमें रानी मधुमक्खी के अंडे पलते हैं और इन घरों की संख्या छत्ते में बढ़ा देने पर श्रमिक मक्खियां ज्यादा से ज्यादा रॉयल जेली बनाकर उस घर में छोड़ती हैं ताकि रानी मधुमक्खी तैयार हो सके। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी के छत्ते में हम ऐसे बड़े घरों की संख्या बढ़ा देते हैं ताकि श्रमिक मक्खियां अधिक से अधिक संख्या में रॉयल जेली लाकर वहां संग्रहित करे जिसे चौथे दिन ड्रापर से निकाल लिया जाता है नहीं तो रानी मक्खी का लार्वा छठे दिन पूरे रॉयल जेली को खा जायेगा।उन्होंने कहा कि इस रॉयल जेली को रिणात्मक 40 डिग्री सेन्टीग्रेड पर जमाने के बाद उसका पाउडर बनाया जाता है और इस प्रकार तीन किलो रॉयल जेली से एक किग्रा पाउडर तैयार होता है। उन्होंने कहा कि देश में रॉयल जेली की कीमत लगभग 20,000 रपये किलो है।
शर्मा ने कहा कि इस प्रकार किसान अगर बड़े पैमाने पर खेती के साथ मधुमक्खीपालन को अपनाये तो यह खेती की उत्पादकता बढ़ाने के साथ साथ सरकार के किसानों की आय को दोगुना करने लक्ष्य को आसानी से साकार कर सकता है.

Sabhar:bhasha

Leave A Reply

Your email address will not be published.