www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

क्रांतिकारी जयप्रकाश नारायण (जेपी) और प्रभावती

आपातकाल की बरसी पर राज कमल गोस्वामी का विशेष आलेख

laxmi narayan hospital 2025 ad

Positive India:Rajkamal Goswami:
जयप्रकाश नारायण सन १९०२ में पैदा हुए । १८ साल की उम्र में १४ साल की प्रभावती देवी से उनका विवाह हुआ । १९२२ में विवाह के दो साल बाद वह पानी के जहाज से आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चले गये ।
प्रभावती देवी के पिता भी स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे , जेल जाना और आंदोलन चलाना ही उनका काम था इसलिये प्रभावती देवी को उन्होंने साबरमती आश्रम में कस्तूर बा की सेवा में छोड़ दिया । जल्दी ही बा के साथ वे घुल मिल गईं , बा भी उन्हें बेटी की तरह मानती थीं । गाँधी जी १९०६ में ही ब्रह्मचर्य का व्रत ले चुके थे । प्रभावती आश्रम के अनुशासित और संयमित जीवन से बहुत प्रभावित हुईं और उन्होंने भी ब्रह्मचर्य व्रत लेने की ठान ली ।

कस्तूरबा के माध्यम से यह निश्चय उन्होंने गाँधी जी तक पहुँचाया । गाँधी जी ने उन्हें जयप्रकाश नारायण से अनुमति लेने को कहा तो प्रभावती ने जयप्रकाश को चिट्ठी लिख कर अपनी इस इच्छा से अवगत कराया कि वे ब्रह्मचर्य का व्रत लेना चाहती हैं । जयप्रकाश ने जवाब में लिखा कि इस विषय पर चिट्ठी से क्या बात करूँ जब आऊँगा तब बात करूँगा । बहरहाल प्रभावती ने पति की अनुमति के बिना ही शेष जीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की शपथ ले ली ।

१९२९ में जयप्रकाश नारायण अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर वापस आये तो बहुत खिन्न हुए । गाँधी जी से उन्होंने बात की , कुछ वाद विवाद भी हुआ जयप्रकाश ने असंतोष भी प्रकट किया तो फिर गाँधी जी ने कह दिया शपथ ले चुकी प्रभावती से तो मैं शपथ तोड़ने को नहीं कहूँगा हाँ तुम यदि चाहो तो दूसरा विवाह कर लो इसमें प्रभावती को भी कोई आपत्ति न होगी ।

जयप्रकाश नारायण को बच्चों का बड़ा शौक था फिर भी दूसरे विवाह के प्रस्ताव से वे मन ही मन बहुत खिन्न हो गये और मौन हो गये । उन्होंने प्रभावती देवी को उनके ब्रह्मचर्य व्रत के साथ ही अपना लिया और फिर विवाह नहीं किया । भीष्म की तरह कुछ उनका भी निर्णय था । जवाहर लाल के आग्रह पर उन्होने काँग्रेस की सदस्यता ले ली और स्वाधीनता संग्राम आंदोलन में कूद पड़े और १९३२ के सविनय अवज्ञा आंदोलन में नासिक जेल भेजे गये उसी दौर में अच्युत पटवर्द्धन और लोहिया जी उनके करीब आये । सन ४२ मे वह अनेक साथियों के साथ हजारीबाग जेल तोड़ कर फरार हो गये और भूमिगत रह कर आंदोलन का संचालन किया ।

आज़ादी के बाद नेहरू उन्हें मंत्रिमंडल में लेना चाहते थे पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया। सन १९५२ में पहले आमचुनाव के बाद नेहरू काँग्रेस की एकतरफा जीत से बहुत उत्साहित थे किन्तु विशाल बहुमत स्वच्छंद भी बनाता है । नेहरू ने पहले पंत जी के माध्यम से फिर सीधे बुला कर जयप्रकाश नारायण को उप प्रधानमंत्री का पद प्रस्तावित किया लेकिन जेपी ने पता नहीं क्यों यह प्रस्ताव ठुकरा दिया । जवाहर लाल ने बाद में भी कोशिशें की पर जेपी अडिग रहे । जनवरी सन ६४ में जब नेहरू जी को हल्का पक्षाघात हुआ था तो शास्त्री जी ने कामकाज सम्हाला था तभी स्पष्ट हो गया था कि शास्त्री जी आगे चल कर देश का नेतृत्व करेंगे ।

जयप्रकाश नारायण नेहरू से पूरे १३ साल उम्र में छोटे थे यदि वह नेहरू का प्रस्ताव स्वीकार कर लेते तो लंबे समय तक के लिये एक सुशासन की उम्मीद की जा सकती थी ।

मगर कुछ लोग जन्मजात क्रांतिकारी ही होते हैं रचनात्मक काम में मन नहीं रमता। जेपी फिर लौटे सन चौहत्तर में । इस बार सम्पूर्ण क्रांति लेकर । आगे जो हुआ वह इतिहास है ।

लेखक:राजकमल गोस्वामी
२५ जून २०२० आपातकाल की स्मृति में

Leave A Reply

Your email address will not be published.