Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
तनिक फ्लैशबैक में चलिये। सन 2000 से 2005 तक जॉन राइट भारत के क्रिकेट कोच रहे। इस दौरान भारतीय टीम ने अपनी दब्बू छवि बदली। भारत के बाहर जीत का सिलसिला शुरू हुआ। भारत विश्वकप के फाइनल तक पहुँचा। नेटवेस्ट सीरीज जीती, ऑस्ट्रेलिया का विजय रथ रोका, ऑस्ट्रेलिया को मुंहतोड़ उत्तर देना शुरू हुआ…
सन 2005 में गांगुली कोच के रूप में ले कर आये ऑस्ट्रेलियन ग्रेग चैपल को। चैपल की निष्ठा, मेहनत, दूरगामी सोच वगैरह वगैरह के किस्से गाये जाने लगे… लगा जैसे सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी।
चैपल ने आते ही उठा पटक शुरू की। इतनी अधिक उठापटक की टीम ही खंडित हो गयी। खेल का नाश हो गया। स्थिति यहाँ तक आ गयी कि भारतीय टीम विश्वकप के क्वालिफाइंग राउंड से ही बाहर हो गयी। अंत में चैपल को धक्के मार कर निकालना पड़ा।
तो भाई साहब! मूल बात यह है कि अपनी शर्तों और जिद्द का ढिंढोरा पीटने वाला व्यक्ति स्वयं के लिए भले ही अच्छा हो, समूह के लिए गोबर निकलता है। टीम को लेकर चलने के लिए बहुत सहिष्णुता की जरूरत होती है। सबकी सुननी होती है, सबकी अच्छाइयों कमियों का ध्यान रखना होता है, सबके कम्फर्ट का ध्यान रखना होता है। वहाँ यदि आप अपनी जिद्द थोपेंगे तो टीम खंडित होगी। भरोसा टूटेगा, ग्रुपिंग होगी और अंततः बंटाधार होगा…
फिलहाल भारतीय टीम के बंटाधार के लिए रोहित और कोहली से अधिक गम्भीर जिम्मेवार हैं। एक साल पहले एकदिवसीय विश्वकप फाइनल खेलने वाली टीम, मात्र कुछ महीने पूर्व ही 20-20 विश्वकप जीतने वाली टीम आज अपने ही प्रसंशकों से गाली खा रही है। जबकि इस बीच में यदि कुछ बदला है तो केवल कोच।
गम्भीर कोच बनने के पूर्व ही अपना रङ्ग दिखा चुके थे। राग, द्वेष, घृणा, बदला जैसे भाव उनमें खूब हैं। ऐसा व्यक्ति बहुत अच्छा खिलाड़ी भले हो, अच्छा कोच नहीं हो सकता।
भारतीय टीम यदि बहुत जल्द इस गड़बड़झाले को ठीक नहीं करती तो बहुत नुकसान हो जाएगा। आज का मैच ही देख लीजिये। रोहित स्वयं हट गए, फिर भी टीम की बैटिंग की वही दशा है…
कोच बदलो भाई! बीमारी वहाँ है।
साभार:सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)