www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

तीर्थराज प्रयागराज के वैभव को याद कीजिए , प्रयागराज को प्रणाम कीजिए !

-दयानंद पांडेय की कलम से-

Ad 1

Positive India:Dayanand Pandey:
मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूं । कभी लोगबाग इसे तीर्थराज प्रयाग या प्रयागराज कहा करते थे । तुलसीदास के समय में ही अकबर हुआ था और उसी ने प्रयागराज को कुचल कर , मिटा कर इलाहाबाद नाम किया था । तो अगर प्रयाग नाम फिर से वापस आ गया है तो उस का स्वागत है । प्रणाम है । अगर आप का नाम राम कुमार है और कुछ लोगों ने उसे बिगाड़ कर रमुआ कर दिया है तो यह राम कुमार या उस के शुभचिंतकों का अधिकार है कि उसे रमुआ से राम कुमार कहने लगें । वैसे भी प्रयाग का मतलब होता है नदियों का मिलन । फिर प्रयाग में तो तीन ऐतिहासिक नदियां मिलती हैं । त्रिवेणी और संगम किसी अकबर ने नहीं बनाया । इसी लिए इसे प्रयागराज भी कहते हैं । उत्तराखंड में तो कई सारे प्रयाग हैं । जहां-जहां नदियां मिलती हैं , वहां-वहां प्रयाग । प्रयाग हमारी अस्मिता है । हम जब छोटे थे तब हमारे बाबा हर साल प्रयाग नहाने जाते थे । बड़े ठाट से सब से कहते थे कि प्रयागराज जा रहा हूं ।

Gatiman Ad Inside News Ad

सोचिए कि संगम पर क्या अदभुत नज़ारा है कि एक तरफ से गंगा बहती हुई आती है पूरे वेग से और दूसरी तरफ से पूरे वेग से बहती आती है यमुना । न गंगा यमुना को डिस्टर्ब करती है न यमुना गंगा को। कोई अतिक्रमण नहीं। दोनों ही एक दूसरे को न रोकती हैं न छेंकती हैं। बड़ी शालीनता से दोनों मिल कर काशी की ओर कूच कर जाती हैं। और एक हो जाती हैं। प्रकृति का यह खूबसूरत नज़ारा औचक कर देता है। इस का औचक सौंदर्य देख मन मुदित हो जाता है। यह अलौकिक नज़ारा देख मन ठहर सा जाता है। दूधिया धारा गंगा की और नीली धारा यमुना की। मन बांध लेती है। मन में मीरा का वह गीत गूंज जाता है-चल मन गंगा यमुना तीर ! मन गुनगुनाने लगता है- तूं गंगा की मौज मैं जमुना की धारा ! गंगा-जमुनी तहज़ीब का चाव भी यही है। और यहां तो विलुप्त सरस्वती का भी संगम गंगा और यमुना के साथ है। त्रिवेणी का तार बजता है। मन उमग जाता है। दोनों बहनों का बहनापा देखते ही बनता है। आपसी शालीनता को वह समोए रहती हैं । संगम की पवित्रता और शालीनता देखते ही बनता है। कोई शासक इसे नहीं बदल सकता । बीते कई वर्षों से मैं जब भी कभी इलाहाबाद जाता हूं तो थोड़ा समय निकाल कर संगम भी ज़रुर जाता हूं। संगम की शालीनता को निहारने। संगम की शांत शालीनता मन को असीम शांति से भर देती है। दिन हो, दोपहर हो, शाम हो या सुबह , यह मायने नहीं रखता, संगम की शालीनता को मन में समोने के लिए। चल देता हूं तो बस चल देता हूं। खास कर शाम को उस की नीरवता मन में नव्यता से ऊभ-चूभ कर देती है। इक्का-दुक्का लोग होते हैं। और संगम की शालीनता को निहारने के लिए शांति का स्पंदन शीतलता से भर देता है। संगम को मन में समोना हो, उस की शालीनता को मन में थिराना हो तो शांति ज़रुर चाहिए। भीड़-भाड़ नहीं। सचमुच भीड़ से बच कर ही संगम का सुरुर मन में बांचने का आनंद है, सुख है और उस का वैभव भी। भीड़ में भी उस का वैभव हालां कि कम नहीं होता। तो यह प्रयागराज का वैभव है , कुछ और नहीं ।

Naryana Health Ad

लेकिन देख रहा हूं कुछ अकबर प्रेमी लोग मरे जा रहे हैं अल्लाहाबाद के लिए । बताते नहीं थक रहे कि अकबर ने इलाहाबाद के लिए बांध बनाए , नदियों के नाम नहीं बदले आदि-इत्यादि । तो क्या यह एहसान किया ? नदियों का नाम कभी, कहीं बदला हो तो कोई बताए मुझे । शहरों , मुहल्लों के नाम बदलना तो रवायत हो गई है । गुलाम बुद्धि का कोई जवाब वैसे भी नहीं होता । तो इस बाबत कुछ कहना-सुनना बेमानी है । मुंबई , चेन्नई , कोलकाता जैसे नाम जब फिर से अपने मूल पर लौटे तो किसी ने विधवा विलाप नहीं किया । अगर यही प्रयागराज का नाम मायावती आदि इत्यादि ने किया होता तो सब के सब ख़ामोश रहते । कहीं कोई विवाद या चिंता नहीं दिखती । ऐतराज दरअसल प्रयाग पर नहीं , प्रयाग नाम करने वाले योगी से है । लेकिन प्रयाग नाम पर इतिहास की दुहाई दे-दे कर जान देने वाले लोग प्रयाग के इतिहास को हजम किए दे रहे हैं । यह नादान और पूर्वाग्रह के मारे हुए लोग प्रयाग का महत्व और अर्थ नहीं जानते , माहात्म्य नहीं जानते । वेद , पुराण हर कहीं प्रयागराज का वैभव उपस्थित है । दोस्तों प्रयागराज के वैभव को याद कीजिए , प्रयागराज को प्रणाम कीजिए और श्रीराम चरित मानस के बाल कांड में तुलसीदास ने जो लिखा है , तुलसीदास को प्रणाम करते हुए यहां वह भी पढ़िए :

को कहि सकहि प्रयाग प्रभाउ।
कलुष पुंज कुंजर मृग राउ।।

भरद्वाज मुनि अबहूं बसहिं प्रयागा।
किन्ही राम पद अति अनुरागा।।

याज्ञवल्क्य मुनि परम विवेकी।
भरद्वाज मुनि रखहि पद टेकी।।

‘देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सागर मंज्जई सकल त्रिवेनी।।

फिर तुलसी ही नहीं प्रयाग का ज़िक्र अपने काव्य में और भी बहुत से कवियों ने बारंबार किया है । पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखा है :

यह जीवन चंचल छाया है, बदला करता प्रतिपल करवट,
मेरे प्रयाग की छाया में पर, अब तक जीवित अक्षयवट !

प्यारे प्रयाग ! तेरे उर में ही था यह अन्तर-स्वर निकला,
था कंठ खुला, काँटा निकला, स्वर शुद्ध हुआ, कवि-हृदय मिला !

ये कृत्रिम, तू सत्-प्रकृति-रूप, हे पूर्ण-पुरातन तीर्थराज !
क्षमता दे, जिससे कर पाऊँ तेरा अनन्त गुण-गान आज !

मैं भी नरेन्द्र, पर इन्द्र नहीं, तेरा बन्दी हूँ, तीर्थराज !
क्षमता दे जिससे कर पाऊँ तेरा अनन्त गुण-गान आज !!

दयानंद पांडेय-रिपोस्ट(ये लेखक के अपने विचार है)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.