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परदे का फाग… १, रङ्ग बरसे भीगे चुनर वाली…

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
अमिताभ तब शिखर पर थे। शिखर पर थीं रेखा! और निर्देशन के क्षेत्र में उसी ऊंचाई पर थे यश चोपड़ा भी… सन इक्यासी में ये सब मिल कर लाये एक ऐसी कहानी, जो भांग के नशे की तरह थी। नशा मदहोश करता है, आनन्द से भर देता है, पर अंततः कुदाता नाले में ही है… कहानी थी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर वाली… आप हिंदी के तमाम शब्दकोश खंगाल लीजिये, आपको अफेयर के लिए हिन्दी शब्द नहीं मिलेगा। कारण? कारण कि भारतीय समाज ने कभी ऐसे रिश्तों को स्वीकृति ही नहीं दी… पर भाई साहब! है तो नशा! ऐसी कहानियां सुनने में तो मजा देती ही रही हैं न? यशराज उसी मजे को कैश करने निकले थे।

सिलसिला के सङ्गीत के लिए उन्होंने फिल्मी दुनिया के संगीतकारों के अलग चुना शास्त्रीय संगीत की धुरंधर पण्डित शिवकुमार शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया की जोड़ी को। इस तरह शिव- हरि का सङ्गीत पहुँचा सिनेमा के पर्दे तक…

यशराज कहानी में अमिताभ और रेखा के अवैध प्रेम सम्बन्धों को समाज के लाने का समय तय करते हैं होली का… मतलब होली का एक गीत, जहां नायक बिना झिझके स्वीकार करे अपने प्रेम को… गीत लिखने का जिम्मा भी किसी फिल्मी गीतकार को नहीं दिया गया, गीत लिखते हैं अमिताभ के पिता डॉ हरिवंश राय बच्चन! और वे भी मुखड़ा उठाते हैं भोजपुरी के एक पारंपरिक फाग से… और गायक कौन? न किशोर, न रफी, न महेन्द्र, गाते हैं अमिताभ! जिनके लिए कभी उनके हालावादी कवि पिता कहते हैं- अमिताभ मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति है। और इस तरह तैयार होता है होली का सबसे लोकप्रिय फिल्मी गीत, जिसका रङ्ग पिछले चालीस साल से बरस रहा है…

गीत की शुरुआत में अमिताभ का हाथ उठा कर लिया गया अलाप! हंssss रङ्ग बरसेsss जैसे भांग के नशे में धुत है गवैया… बजता है ढोलक! झांझ! और अन्य देहाती साज… वही, जो तब देहाती फगुआ में बजा करते थे। सिनेमा हॉल में बैठे लोग कैसे पागल न हो जाँय भाई?

गीत चल रहा है। नशे में धुत नायक! उस युग का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता अभिनय के साथ साथ गायन में भी अपना बेस्ट दे रहा है। उनका नृत्य, कमर हिलाना… दर्शकों के माथे पर चढ़ चुका है नशा! रेखा और अमिताभ के चेहरे पर चढ़ रहा है रङ्ग! पहले लज्जा, फिर झिझक, और फिर दोनों ही एक साथ गायब होते हैं और उतर आती है निर्लज्जता! दूसरी तरफ संजीव कुमार और जया के चेहरे से रङ्ग उतर रहे हैं। चेहरे पर उदासी पसर गयी है… संजीव कुमार बजाना छोड़ कर ढोलक पर कुहनी टिका लिए हैं और चुपचाप निहार रहे हैं… जया के चेहरे पर दुख है, ग्लानि है, उदासी है… और फूल उड़ाते बच्चन गाये जा रहे हैं- बेला चमेली का सेज सजाया…

गीत तनिक अमर्यादित है। द्विअर्थी, असभ्य… पर उसका जादू ऐसा कि उसके बिना होली नहीं मनती अब! होली का सबसे लोकप्रिय गीत यही है। यह जादू केवल अमिताभ जगा सकते थे…

साभार:सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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