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राजनीति के मदिरालय में, कई लुढ़कते रहते हैं

राही की यह मधुशाला

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Positive India:Rajesh Jain Rahi:

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लुढ़क गई फिर सत्ता देखो,
लुढ़क गया सुरभित प्याला।
लुढ़क गए कुछ साथी कच्चे,
लुढ़की हाथों की हाला।

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राजनीति के मदिरालय में,
कई लुढ़कते रहते हैं।
काव्य रसों को पीने वाले,
कभी न लुढ़कें मधुशाला।।

लेखक: कवि राजेश जैन राही, रायपुर

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