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राजकोषीय घाटे को तीन प्रतिशत तक लाना सरकार का कानूनी कर्तव्य : सीतारामन

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Positiveindia :New Delhi;
(भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा है कि मंत्री के रूप में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत तक लाने के कानूनी प्रावधान से बंधी हैं। उन्होंने कहा कि बजट 2019-20 में जो भी अनुमान लगाए गए हैं वे व्यवहारिक और उन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
सीतारामन ने कहा,मैं मंत्री हूं। राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) का एक कानून है और इसके तहत हम राजकोषीय घाटे को घटाकर जीडीपी के तीन प्रतिशत तक लाने को प्रतिबद्ध हैं। जब तक यह कानून है मुझे उसका अनुपालन करना ही है।
शुक्रवार को पेश आम बजट 2019-20 में सरकार ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 प्रतिशत रखा है। जबकि फरवरी में पेश अंतरिम बजट में यह लक्ष्य 3.4 प्रतिशत था।
सरकार को इस कानून के तहत 2020-21 तक राजकोषीय घाटे को सीमित और प्राथमिक घाटे (राजकोषीय घाटा और ब्याज भुगतान का अंतर) को शून्य करना है। केंद्र सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।
आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए राजकोषीय लचीलेपन की बहस पर उन्होंने कहा,मैं भी इस बहस के पक्ष या विपक्ष में बड़ी खुशी-खुशी शामिल हो सकती थी कि क्या भारत के लिए तीन प्रतिशत राजकोषीय घाटे से चिपके रहना जरूरी है। अब भी यह बहस का विषय बना हुआ है। अभी यह बहस इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है कि एफआरबीएम कानून को बदला जाए और राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में ढील दी जाए।उन्होंने शनिवार को संवाददाताओं से एक बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि बजट में लगाए गए सारे अनुमान व्यवहारिक और तर्कसंगत हैं। विनिवेश सहित कोई भी लक्ष्य बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं पेश किया गया है। विनिवेश का लक्ष्य पिछले बार से मात्र 25,000 करोड़ रुपये ही ज्यादा है।उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर वसूली के अनुमान भी व्यवहारिक हैं।बजट में प्रत्यक्ष कर वसूली में 17.5 प्रतिशत और अप्रत्यक्ष करों की वसूली में 15.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
उन्होंने इस आलोचना को खारिज किया कि उनके बजट में उपभोग को बढ़ाने के लिए कुछ खास नहीं किया गया है। सीतारामन ने कहा,हमने खपत की उपेक्षा नहीं की है। हमने पिछली सरकार में भी इसकी उपेक्षा नहीं की थी। मैं फिर कह रही हूं कि सार्वजनिक व्यय को बुनियादी ढांचा विकास के माध्यम से केंद्र में रखा जाएगा।’’ उन्होंने इसे धन को जनता के हाथ तक पहुंचाने का सबसे कारगर रास्ता बताया और कहा कि इसके माध्यम से निजी खपत को प्रोत्साहन मिलेगा।उन्होंने कहा कि खपत को बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संकट का सामना करने के कदम उठाए गए हैं।
बजट में इसके लिए बैंकों को चालू वित्त वर्ष में मजबूत एनबीएफसी कंपनियों की कुल एक लाख करोड़ रुपये की पूल की हुई परिसंपत्तियां (ऋणों) खरीदने के लिए सरकार की ओर से सीमित गारंटी देने का प्रस्ताव किया गया है। इसके तहत छह माह के लिए बैंकों को प्रथम 10 प्रतिशत के नुकसान की भरपाई करने की गारंटी सरकार की ओर दी गयी है।इसके साथ ही एनबीएफसी कंपनियों सार्वजनिक निर्गम के जरिए धन जुटाने में ऋणपत्र विमोचन आरक्षित कोष (डीआरआर) बनाने की शर्त से मुक्त कर दिया गया है। इस तरह से वे सार्वजनिक निर्गम का पूरा पैसा कारोबार पर लगा सकती हैं।नियामकीय निगरानी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने आवास ऋण कंपनियों को राष्ट्रीय आवास बैंक की जगह सीधे रिजर्व बैंक की निगरानी में डालने का प्रस्ताव किया है।

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