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21 मई शहादत दिवस – कनक तिवारी की कलम से

"तुम्हारी याद में"

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Writer Kanak Tiwari on Rajiv Gandhi: Credit:Facebook
Positive India:By Kanak Tiwari:
आज तुम्हारे निवास में पराजय पर्व मनाया जा रहा है। बड़ी मुश्किल से छत्तीसगढ़ से चलकर मैं राजधानी अपने नायक से मिलने आया हूं। हजारों लोग उन्मत्त बने समूह या रेवड़ में खड़े हैं। सभी विचलित हैं। वह एक छोर से सरकता हुआ आता है। मैं सहम कर पीछे हट जाता हूं। वह यहां भी आ गया है। मैं नर्वस हो उठता हूं। वह तो तस्वीर से ज़्यादा सुन्दर है। मैं घबराहट में हूं। मैं आखिरी समूह में खड़ा होता हूं। आज देख लिया, यही काफी है। लगता है वह धीरे धीरे चलता हजारों निगाहों से बचता मुझे ढूंढ़ रहा है। वह मुझे घूर रहा है। चुनाव में हारकर वह त्रासदी का नायक हो गया है। लोग पिले पड़े ढ़ाढ़स बंधा रहे हैं। हार के कारण खोज रहे हैं। वह फकत सुनता जाता है।

मैं आदतन वाचाल हूं। अंग्रेजी में बतियाने लगता हूं जिससे मुझे भद्र समझे। वह भी अंग्रेजी में बात करता है। मैं उसके कानों में फुसफुसाता हूं। ’’मैं अपनी पार्टी के अध्यक्ष, अपने पूर्व प्रधानमंत्री, जिसकी जन्मशताब्दी है उसके नाती तथा एक यशस्वी मां के पुत्र से मिलने नहीं आया हूं।….’’उसका कसैला, निर्विकार और उदासीनता उलीचता चेहरा पूछता है ’’तो?’’ साहस संजोकर, शब्द चबा चबाकर सहमते हुए कहता हूं ’’आई हैव कम टू मीट माई हीरो, आई रिपीट सर, माई फीरोज़ गांधीज़ हीरोज़ सन’’ (मैं अपने नायक फीरोज़ गांधी के बेटे से मिलने आया हूं)। उसके गालों पर अपनापन तैरने लगता है। मुंह में मिश्री घोलकर आंखों में आंखे डालकर पूछता है ’’डू यू लव पापा दैट मच?’’ (तुम मेरे पिता को इतना चाहते हो?’’) ‘‘ओनली नेक्स्ट टू यू’’(केवल आपके बाद)। मेरा सपाट उत्तर है। उसकी आंखों की कोर भीगी नहीं फिर भी मुझे गीली लगती हैं।

चुनाव में हारने के कारण जानने दूसरे दिन बुलाता है। बहुत से पराजित दरबारी कलफ लगे कुर्तों और सूटों में भीड़ से अलग औकात दिखाते शोक पर्व के रचयिताओं की तरह खड़े हैं। आज मैं दंडकारण्य भाषण वाला श्रव्य कैसेट ले आया हूं।

’’मेरे बारे में सोच रहो हो न?’’ वह मुझे सरासर शरारत से छेड़ता है। मैं शरमाने लगता हूँ। ’’हाँ’’ मेरा थूक गुटकता उत्तर है। वह मेरे हाथ को अपने हाथ में लेकर दबा देता है। इसके हाथों में कड़ियल ताब है। आसमान में उड़ने वाला पायलट धरती पर लौट आया। मुझे एक तरफ खींचकर ले गया है। कैसेट सुनकर उसकी आंखों में रोशनी का इन्द्रधनुष हिचकोले लेता है। ‘मेरे बारे में कहा?‘ पूछता है। ‘जी‘ मेरा उत्तर है।‘ हां मैंने कहा था ‘अमेठी से हमारे महान सूफी संत कवि मलिक मोहम्मद जायसी की धरती से ललकारा है राजीव गांधी ने पूरे हिंदुस्तान को……..‘‘

विस्तार से बातें करता है। वह चेहरे पर अपने पिता के विद्रोह, एकाकीपन और गुमनामी को ढूंढ़ रहा है। इसे भी पीठ पर छुरा मारकर युद्ध के अन्तिम दौर में वित्त मंत्री ने आहत कर राजकाज और दंड अपने हाथ में लेकर राज प्रमुख के पद को अस्थायी रूप से हथिया लिया था। वह जनता में अपनी लोकप्रियता की वापसी ढूंढ़ रहा है।

मैं वही सब बोलता चल रहा हूं जो वह पहले से जानता है। मैं इसकी साफगोई, शिष्टता और सपाटबयानी का कायल हूं। उसके स्मित हास्य की छितराई चांदनी में नहाने लगता हूं। राजसी व्यक्तित्व में रहस्यों की पर्तों को खोलने की बेचैन झिलमिलाहट मुझे दिखाई देती है। यह आदमी परत-दर-परत तो है नहीं। फिर यादों की पपड़ियां कहां से झर रही हैं? लगता है पीठ के ज़ख्म कुरता उठाकर वह मुझे दिखा रहा है। चेहरा भीड़ के सामने कर लेता है। उसकी पीठ भयावह है। उस पर दगाबाजों के खंजर हैं। ‘‘पीठ पीछे राज्यतंत्र में क्या क्या होता है? मैं बुदबुदाता हूं। ‘इनमें से कई चेहरे तो आपके सामने चेहरे लटकाए खड़े हैं। उनके ही नाम पते आपकी पीठ पर खुदे हैं।‘ यह नया रहस्य देखकर चीख पड़ता हूं। ‘क्या करेंगे आप इनका?‘ मैं पूछता हूं। ‘देखेंगे‘ उसका स्टाॅक जुमला मुंह से निकलकर धौल मारता मेरी पीठ पर थरथराने लगता है। इन चार मुलाकातों के बाद तुमने मुझे राज्य के बड़े नेताओं से पूछे बगैर मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महामंत्री बना दिया था। ऐसा क्यों किया था?
लेखक:कनक तिवारी (साभार-फेसबुक)

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