श्रीनगर में सिक्ख बच्चियों के साथ हुए कट्टरपंथी मजहबी अत्याचार अनाचार के विरुद्ध जमकर आवाज उठाइये
श्रीनगर में सिक्ख बच्चियों के अपहरण, धर्म परिवर्तन और जबरन निक़ाह के विरुद्ध सिक्खों के साथ आवाज उठाये ।
Positive India:Satish Chandra Mishra:
ऐसी करतूतों, ऐसे ही कुकर्मों का नतीजा 1000 साल भोगा है हमने पर फिर भी कोई सबक नहीं सीखा।
श्रीनगर में एक सिक्ख बच्ची के अपहरण, धर्म परिवर्तन और जबरन निक़ाह के विरुद्ध जब सिक्खों ने आवाज उठायी है। उस समय हम उनका साथ नहीं दे रहे हैं। उनका सहयोग नहीं कर रहे। इसके बजाए सिरसा सरीखी चौथे पांचवें दर्जे की राजनीतिक कठपुतलियों और 2-3 दर्जन खालिस्तानी लफंगों के बयानों के बहाने तीखे तल्ख व्यंग्यबाणों की बौछार कर रहें हैं। अपने उन व्यंग्यबाणों पर ऐसे आनंदित हो रहे हैं मानों कोई बहुत बड़ा तीर मार दिया है।
खेद का विषय यह है कि ऐसे कुकर्म हिन्दूओं और हिंदुत्व के तथाकथित बड़े बड़े सोशलमीडियाई ठेकेदार कर रहे हैं। यह ठेकेदार ऐसा कुकर्म करते समय यह भूल रहे हैं कि इसका सबसे बड़ा लाभ केवल और केवल उनको मिल रहा है और मिलेगा, जो अजगर की तरह हमें निगल जाने को तैयार बैठा है।
जब किसी भी वर्ग समुदाय समाज के ठेकेदार सस्ते सतही थोथे ढोंगी पाखंडी लोग बन जाते हैं तो उस वर्ग समुदाय समाज को गम्भीर परिणाम भोगने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
श्रीनगर में एक सिक्ख बच्ची के साथ हुए कट्टरपंथी मजहबी अत्याचार अनाचार के विरुद्ध बिना किसी अगर मगर के जमकर आवाज उठाइये। थूकिए उन ठेकेदारों पर जो इस गम्भीर और संवेदनशील मौके पर एकदूसरे को कोस कर आपस में लड़ने जूझने में जुटे हुए हैं।
जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के आपसी विद्वेष ईर्ष्या और अहंकार के टकराव से शुरू हुई यह आत्मघाती विकृति आज भी विषबेल की तरह हमारे मनमस्तिष्क से लिपटी हुई है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)