Positive India:Gajendra Sahu:
आज सुबह की अख़बार सीधे हॉर्न बजाते घर में घुसी । जब अख़बार देखा तो पता चला आज रायपुर में ख़बरों का अकाल पड़ा है या फिर ख़बर भी रायपुर के आम आदमी की तरह ट्रैफ़िक जाम में ही फंसी रह गई हो ।
रायपुर विकासशील शहरों में टॉप 20 पर है और रहने लायक शहरों की सूची में टॉप 10 पर है ऐसा साल भर पहले न्यूज़ मे प्रकाशित हुआ था । शायद यही कारण है कि रायपुर की जनसंख्या दिनो-दिन बढ़ते ही चले जा रही है । पिछले १० सालों में रायपुर की जनसंख्या लगभग दोगुनी हो चुकी है ।
बढ़ती जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा शहर आख़िर कितना सहन कर पाएगा?
रायपुर के ट्रैफ़िक सिस्टम से सभी परिचित है । इनके कई कारण भी है । और कहीं न कहीं उस कारण के कारक भी हम ही है, जिसका नतीजा है घंटो सिग्नल में खड़े रहना । बाज़ार जैसे इलाक़ों में तो जाना ही पाप है । ऊबड़- खाबड़ सड़कें, ऐक्सिडेंट जैसे भयानक अनहोनी घटनाएँ,पर्यावरण प्रदूषण इत्यादि। ख़ैर लिस्ट लम्बी है अगर इसे ही गिनते रहे तो पृथ्वी के बाहर जाना पड़ सकता है ।
कारण जानने बाहर जाने का न सोचे, घर से ही शुरुआत करे । आजकल सभी लोग गाड़ी चाहे शौक़ से ले या दिखावा के लिए ले या फिर ज़रूरत के लिए ले, पर एक घर में २ या ज़रूरत से अधिक गाड़ियाँ मौजूद है,जितने लोगों की संख्या घर में नहीं उससे अधिक गाड़ियों की संख्या है ।
आजकल के बच्चों को भी १०-१५ साल की कच्ची उम्र में गाड़ी ऐसे सौंप दी जाती है जैसे अब उनके खेलने-कूदने और साइकल चलाने के दिन नहीं परिवार सम्हालने के दिन हो ।
साइकल का ट्रेंड तो अब सिर्फ़ रईसी दिखाने मात्र रह गया है ।
काम की ऐसी भागा-दौड़ी हो चुकी है कि सिग्नल का ख़तरा बॉस के ख़तरे से कहीं छोटा नज़र आता है ।
यदि नियम से देखा जाए तो कोई भी दुकान या पार्किंग सड़क के किनारे होती है,पर आप विश्व के अजूबे भरे शहर रायपुर में है जहाँ दुकान और पार्किंग ज़ोन बीच सड़क पर है । यहाँ आम आदमी भी फूटपाथ या किनारे नहीं, गाड़ी के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए सड़क के बीचों-बीच पर चलता है । यदि आप गूगल मैप का प्रयोग करते है, तब आपको पता चलेगा जिसे आप बाज़ार समझ रहे है असल में वो तो राजधानी का मुख्य मार्ग है ।
स्वतंत्रता संग्राम के जैसे ही बहुत लड़ाइयाँ लड़ी गई, न जाने कितने ही सड़क वीरगति को प्राप्त हुए, तब कहीं जाकर शहर में भारी वाहनो का प्रवेश वर्जित हुआ । पर बड़े वाहनो की याद नहीं गई क्यूँकि छोटे वाहनो ने क़सम खा ली कि हमारे बड़ों के साथ हुए नाइंसाफ़ी का बदला हम राजधानी के ट्रैफ़िक व्यवस्था को बर्बाद करके लेंगे; तो भारी वाहनो ने भी क़सम ख़ाली कि तुम शहर को बर्बाद करो और हम शहर के बाहर मौत का तांडव करेंगे । सड़क हादसे में मौत की संख्या दिनो-दिन विकराल रूप ले रही है ।
स्कूल बस, सिटी बस,ऑटो,कार,दुपहिया वाहन का नज़ारा बिलकुल कीड़े- मकोड़ों की तरह भद्दा सा हो गया है ।
कुछ स्कूल बस फ़िटनेस टेस्ट पास नहीं कर पाए फिर भी राजधानी में धड़ल्ले से घूम रहे है । ऑटो की बात तो सबसे निराली है । ये तो बिना परमिट के और बेख़ौफ़ घूम रहे है । इनका सिद्धांत है कि हमारा सामने वाला टायर कैसे भी करके निकल जाए फिर पूरी ऑटो तो हम ऐसे ही निकाल देंगे । इनकी ज़्यादातर दुश्मनी दुपहिया वाहनो से होती है जो इनके ट्रैफ़िक बर्बाद करो मिशन के बीच में आ जाते है ।
दुपहिया वाहनो का प्रभाव तो इतना बढ़ा है कि कुछ दिन बाद बैंक और एटीएम की लाइन में यही खड़े नज़र आएँगे ।
कई समजिक संस्था और सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाया गया पर मजाल है कि हमारे राजधानीवासी उनसे कुछ सीख ले । इन सभी पर क़ाबू पाने के लिए लाखों के सर्वे कराए गए, अब उन सर्वे को किस जगह दफ़न कर दिया गया है इसके लिए भी सर्वे करना होगा । ट्रैफ़िक नियम क़ानून तो सिर्फ़ भैया,साहब और नोटो की हरी पत्ती के आगे दम तोड़ती नज़र आ रही है ।
रायपुर शहर के महापौर द्वारा प्रदूषण मुक्त करने के लिए साइकल रैली की गई, साइकल ट्रैक बनाए गए ,जिसमें एक उम्मीद की किरण नज़र आइ कि लोग अब गाड़ी और साइकल का प्रयोग समान करेंगे । प्रदूषण तो कम हुआ पर ट्रैफ़िक सिस्टम तस के मस रहा । साइकल सिर्फ़ ३ तारीख़ के इंतज़ार में धूल खाती रहती है और ट्रैक बरसात आने पर धूलकर साफ़ हो जाता है।
आज अख़बार में नियमो के विरुद्ध कार्यवाही देखकर अच्छा लगा । 90 कार,12 बस,67 ऑटो और 430 दुपहिया वाहनो पर कार्यवाही हुई । ये कार्यवाही अगर निरंतर चली, तो निश्चित ही कुछ समय में हमें ट्रैफ़िक की परेशानियो से मुक्ति तो नहीं पर थोड़ी राहत तो मिलेगी ही ।
लेखक:गजेन्द्र साहू(ये लेखक के अपने विचार हैं)