Positive India: By Rajesh Jain Rahi:हिंदी की कक्षा में दो शब्द आपस में टकरा गए। एक शब्द था ‘पप्पू’, एक था ‘बहुरूपिया’।
दोनों ही मुखर थे,दोनों थे मनबसिया।
पहले ‘पप्पू’ ने कहा ‘बहुरूपिया’ से- तुम तो रूप बदलते रहते हो,
कभी ‘प्रधान सेवक’, कभी ‘चौकीदार’, कभी ‘गंगा पुत्र’, कभी खुद को ‘राम भक्त’ कहते हो। रातों-रात भेष बदलकर लोगों के पुराने नोट लपक लेते हो, सीमा पार जाकर फ़र्जिकल स्ट्राइक कर देते हो।
‘बहुरूपिया’बोला-‘पप्पू’ तुम बस परिवार तक सीमित रहते हो। कभी मम्मी,कभी दीदी, कभी जीजा-जीजा करते हो।
माया, ममता को छोड़ कभी तो निकलो अकेले,
तुम कितना डरते हो,
बस चोर-चोर रटते हो।
मैं तो खतरों का खिलाड़ी हूँ, बेशक तेरी नजरों में अनाड़ी हूँ। चलो कुछ हंगामा करते हैं, शब्दकोश से बाहर निकल,
आम चुनाव लड़ते हैं।
लेखक:राजेश जैन राही, रायपुर