आज फिर, किसी बात पर,
श्रीमती ने अपना तेवर दिखलाया,
मुझपर अपने शब्दों का अस्त्र चलाया-
“हे पति महोदय, मैंने लाख समझाया, काफी वक्त गँवाया,
मगर आपको कुछ समझ में नहीं आया।”
मैंने बिना कोई तर्क किये, मामला सुलझाया,
झट स्वीकृति में, अपना सर हिलाया।
यह देख श्रीमती हुई तनिक चकित, तनिक भ्रमित, मन कुछ झल्लाया,
बोली- “आज कुछ बदले बदले से दिख रहे हो,
हर बात में हाँ जी हाँ जी कह रहे हो।
क्या यह सच्चा बदलाव है, क्या यह मेरा ही प्रभाव है?”
मैंने कहा – “भागवान, मेरा अच्छा बर्ताव है,
इसका कारण चुनाव है।
मौसम सियासी है,
दिनभर मटर गस्ती करता हूँ, नेताजी के साथ रहता हूँ।
आजकल वो हर बात में शीश झुका रहे हैं,
मतदाताओं को खूब रिझा रहे हैं।
यह फार्मूला मैंने वहीं से चुराया है,
मेरे अंदर भी थोड़ा सा नेता घुस आया है।
राजेश जैन राही, रायपुर