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प्योर वेजिटेरियन भोजन वह होता है जिसके निर्माण में किसी जीवित प्राणी की हत्या का क्रंदन नहीं है

-सुशोभित की कलम से-

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Positive India:Sushobhit:
१. प्योर वेजिटेरियन(Vegetarian)भोजन वह होता है जिसके निर्माण में किसी जीवित प्राणी की हत्या का क्रंदन नहीं है, चीख-पुकार नहीं है, जिसमें ख़ून की धार नहीं फूटती है, जिसमें कोई जीव डर से थर-थर कांपता नहीं है! वह प्योर है। नॉन वेज न केवल इम्प्योर है, बल्कि पाप है, अपराध है, हत्या है!

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२. देश की बहुसंख्यक आबादी मांस खाती है! ये बहुसंख्यकवाद अच्छा कब से हो गया? क्या अब अल्पसंख्यक (यानी शाकाहारी) की बात नहीं की जायेगी? कोई चीज़ अच्छी है या बुरी, इसका निर्णय बहुसंख्या के आधार पर किया जाएगा?

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३. अगर कोई व्यक्ति उस थाली, बरतन से नहीं खाना चाहता, जिसमें किसी ने मांस जैसा निकृष्ट पदार्थ खाया था तो इस लोकतांत्रिक देश में उसको ये अधिकार है या नहीं? या सारे अधिकार जानवरों का सामूहिक हत्याकांड करने वालों के लिए ही सुरक्षित हैं?

४. शाकाहार और मांसाहार का प्रश्न हिन्दू और मुसलमान, ब्राह्मण और दलित, भाजपा और कांग्रेस का प्रश्न नहीं है, यह जानवरों की जीवित रहने की आज़ादी का सवाल है। इस मामले का राजनीतिकरण करना शर्मनाक है क्योंकि कल को हिन्दुत्व, ब्राह्मणवाद, फ़ासिज़्म का विरोध करने वाले विरोध की गरज़ से मासूम जानवरों को और बढ़-चढ़कर मारकर खाएंगे! निर्दोष का क़त्ल विरोध का ज़रिया कब से हो गया? सबसे बड़ा फ़ासिज़्म तो यह मांसभक्षण ही है!

५. इस बात को कहने का क्या मतलब है कि मैं तो वेजिटेरियन हूं पर कोई और मांस खाए तो मुझे आपत्ति नहीं? क्या कोई यह कहता है कि मैं तो हत्या, बलात्कार, लूट नहीं करता पर कोई और करे तो मुझे आपत्ति नहीं? क्यों आपत्ति नहीं? जिस चीज़ को तुम ग़लत समझकर नहीं करते, वह कोई और करे तो तुमको उससे आपत्ति क्यों नहीं है? और अगर किसी को अपना भोजन चुनने की आज़ादी है तो क्या जानवरों को जीवित रहने की आज़ादी नहीं है? और अगर नहीं तो क्यों नहीं?

सारे बुद्धिजीवी, लेखक, कवि, कलाकार बच्चों के क़त्ल के पक्ष में लामबंद हो गए हैं, कितना सघन अंधकार है और कितनी लम्बी लड़ाई है! जबकि अगर आप जानवरों के क़त्ल के पक्ष में हैं तो आप हमेशा के लिए सत्य, न्याय, अहिंसा और मनुष्यता के विपक्ष में हैं, इस बात को अच्छे से समझ लो!

साभार: सुशोभित-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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