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सजा के आधार पर तय नहीं होंगें योग्यता के मानक: हाई कोर्ट

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पॉजिटिव इंडिया :प्रयागराज; 12 अप्रैल 2020:
लॉकडॉउन के समय महत्वपूर्ण फैसलों की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते देते हुए कहा कि अापराधिक मामले में मिली सजा के आधार पर किसी नाबालिग का भविष्य तय नहीं किया जा सकता है । मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति समित गोपाल की पीठ ने कॉन्स्टेबल भर्ती 2015 भर्ती के सन्दर्भ में शिवम मौर्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अहम् फैसला दिया है । दरअसल अभ्यर्थी शिवम मौर्य ने 2015 में सिपाही भर्ती के लिए आवेदन किया था । वह लिखित परीक्षा,शारीरिक दक्षता परीक्षा और मेडिकल परीक्षण में सफल रहा । प्रशिक्षण के लिए उसे देवरिया भेज दिया गया । दस्तावेजों के सत्यापन के बाद दाखिल हलफनामे में उसकी ओर से कहा गया कि वह किसी आपराधिक मामले में शामिल नहीं है और ना ही उस पर कोई मुकदमा दर्ज है । लेकिन जांच में पता चला कि 28 जून 2013 में उसके खिलाफ मारपीट, गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी ,जिसके तहत उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने 1 साल की सजा और ₹35 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था । हलफनामे में गलत जानकारी देने के आधार पर उसकी नियुक्ति निरस्त कर उसे सेवा से बाहर कर दिया गया । इसी आदेश को शिवम मौर्य ने हाईकोर्ट में चुनौती दी । कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए आदेश दिया कि नाबालिगों के मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की मंशा एकदम साफ है कि नाबालिग को सजा के द्वारा सुधारा जाए ,ना कि उसके भविष्य के साथ किसी तरह का खिलवाड़ किया जाए । अतः नाबालिग को मिली सजा के आधार पर उसे किसी भी सरकारी पद के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता । कोर्ट ने शिवम मौर्य को 30 दिन के भीतर सेवा में वापस लेने का भी आदेश दिया है ।

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संवाददाता:विनीत दूबे-एडवोकेट, इलाहाबाद हाईकोर्ट।

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