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पूजिय विप्र सकल गुन हीना

- राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
रावण कोई साधारण ब्राह्मण नहीं था । वह महर्षि पुल्स्त्य का नाती और विश्रवा का पुत्र था । पुलस्त्य को आकाश के सप्तर्षियों में स्थान मिला हुआ है । इस चौपाई के अनुसार तो सीता हरण के बाद भगवान राम को रावण की आरती करनी चाहिए थी । राम ने ऐसी पूजा की कि उसके वंश में कोई रोने वाला न छोड़ा !

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कथानक में जैसे प्रसंग होते हैं वैसे ही संवाद होते हैं । अरण्य कांड में कबंध को यह उपदेश दिया गया है । उसने कभी महर्षि दुर्वासा का अपमान किया था जिससे उसकी यह गति हुई थी । दुर्वासा महाक्रोधी और दूर से बास मारने वाले ऋषि थे किन्तु प्रज्ञावान ब्रह्मवेत्ता थे । ऐसा विप्र पूजनीय ही होता है जो आपको संकट में डाल सकता है ।

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लेकिन दुर्वासा की भी कभी-कभी दुर्गति हो जाती है । महाराज अंबरीष अपने द्वादशी के व्रत का पारण करने जा रहे थे तब तक दुर्वासा कहीं से आ गए । अंबरीष ने उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया । दुर्वासा बोले स्नान करके आता हूँ लेकिन उन्हें लौटने में बहुत देर हो गई । इधर पारण का मुहूर्त निकला जा रहा था तो ब्राह्मणों के परामर्श से अंबरीष ने मुहूर्त रहते पारण कर लिया तब तक दुर्वासा आ गए । अतिथि से पहले भोजन करते देख कर क्रोध में उन्होंने कृत्या प्रकट की जो अंबरीष को मारने दौड़ी ।

महाराज अंबरीष परम वैष्णव थे और भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा का दायित्व सुदर्शन चक्र को दे रखा था । कृत्या का अभिप्राय देख कर सुदर्शन चक्र ने उसे तो नष्ट कर दिया और दुर्वासा को दौड़ा लिया । दुर्वासा तीनों लोकों में दौड़ते फिरे भगवान विष्णु की शरण में भी गए मगर विष्णु ने कहा कि चक्र तो अंबरीष के अधीन है । अंततः दुर्वासा अंबरीष की शरण में पहुँचे जो भोजन लेकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे । किसी तरह चक्र शांत हुआ और इस तरह दुर्वासा की पूजा सम्पन्न हुई ।

खर दूषण रावण मेघनाद कुंभकर्ण सब ब्राह्मण थे ।

पूजा का अर्थ सनातन धर्म में पाश्चात्य धर्मों से सर्वथा भिन्न है । वे एक अदृश्य परमात्मा से प्रार्थना करते हैं जिसे निराकार भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनका परमात्मा एक स्थान विशेष में सीमित क्षेत्र में रहता है । सामने हों तो पूजा हो वरना प्रार्थना प्रेयर और दुआ ही मांगी जा सकती है ।

सनातन धर्म का परमात्मा तो घट घट वासी है । तुलसी कहते हैं “सीय राम मय सब जग जानी । करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी” क्या शूद्र क्या ब्राह्मण !

जड़ चेतन जत जीव जग सकल राममय जानि
बंदउँ सबके पद कमल सदा जोरि जुग पानि ॥

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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