कपड़े पत्रकारों के उतरें और नग्न शिव की सरकार क्यों हो गई?
-देवेंद्र गुप्ता की कलम से-
Positive India:Devendra Gupta:
मध्यप्रदेश के सीधी से आई पत्रकरों की यह तस्वीर चुभन देने वाली, बेहद व्यथित करने वाली है। लोकतंत्र के रक्षा की दुहाई देने वाले शिवराज सिंह चौहान के राज में ऐसा दृश्य देखने को मिलेगा,सोचा भी नही था। ऐसा लग रहा है मानो संविधान की किताब रद्दी की टोकरी में फेंककर रक्षक पुलिस खुद गुंडई पर उतर आई हो।
पुराने दौर की पत्रकार बताते हैं इंदिरा गांधी के राज में लगा आपातकाल भयावह था। उस दौरान सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले पत्रकारों के साथ ज्यादती हुई, उन्हें महीनों तक जेल में ठूस दिया गया था। उन बातों के साथ हम इस ताजा तस्वीर को देखें तो समझ आता है कि सत्ता का चरित्र लगभग एक जैसा ही होता है। किसी ने जेल में डाला तो किसी ने कपड़े उतार अपमानित करने का कुत्सित प्रयास किया।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी, पत्रकारिता तो उनका कर्म है किंतु ये लोग समाज के एक सभ्य नागरिक भी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत इन्होंने अपनी बात रखी थी। अपनी पत्रकारिता में अगर इन लोगों ने कुछ गलत किया तो अपराध दर्ज कीजिए, जांच कराईये,दोषी हो तो कार्रवाई कीजिए परंतु भारतीय संविधान ने आपकी पुलिस को स्वयं जज बनने का अधिकार नहीं दिया है।
आपको क्या लगता है इस घटना से क्या चंद पत्रकारों का ही अपमान हुआ है, नहीं साहब आपकी पुलिस ने पूरी पत्रकार बिरादरी का घोर अपमान किया है।उनके कपड़े उतार कर जो उन्हें नग्न किया गया है तो यह जान लीजिए अब उनके पास खोने के लिए कुछ बचा नहीं है। ऐसे में सब मिलकर आपके सरकार की खुदाई करें इससे पहले आप मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाईये और दोषी पुलिस अफसरों पर बर्खास्तगी की कार्रवाई करिए।
साभार:देवेंद्र गुप्ता-(ये लेखक के अपने विचार हैं)