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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चीफ जस्टिस को किया असहज

-अजीत भारती की कलम से-

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Positive India:Ajeet Bharti:
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चीफ जस्टिस को किया असहज
बड़ा अच्छा लगता है जब न्यायपालिका पर आप टिप्पणी करें और कुछ स्वघोषित, सर्वज्ञ, ‘मैंने संविधान पढ़ा है’, ‘गरिमा होती है’ टाइप के नए-नवेले वकील बिलबिला उठें।
मुझे नहीं लगता कि कोई भी स्वाभिमानी और राष्ट्रहित में सोचने वाला वकील इस बात से भागेगा कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था सड़ी हुई, ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट है। आप रोते रहो कि आधे लम्बित मामले तो सरकार के कारण हैं, पर उसी का आधा सत्य यह भी है कि ढाई करोड़ मामले तो न्यायपालिका में कमी के कारण है।

क्या आप यह बताना चाह रहे हैं कि दो-दो, तीन-तीन पीढ़ियाँ क्या आज भी निचले न्यायालयों में चप्पलें नहीं घिस रहीं? क्या जज के नीचे बैठा पेशकार घूस ले कर तारीखें नहीं देता? क्या हर सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद न्यायिक व्यवस्था पर टिप्पणी नहीं करता कि बहुत मामले लम्बित हैं, कुछ होना चाहिए?

अपने पेशे के प्रति निष्ठावान रहना आपका अधिकार है, लेकिन पेशा यदि भारतीय न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा हो, तो आपके शब्दजाल से आप स्वयं को ही ठग रहे हैं। कम से कम, आम नागरिकों की बात तो मत ही किया कीजिए क्योंकि इस व्यूह में करोड़ों लोग फँसे हुए नाच रहे हैं।

बेल न देने की कुप्रथा, बेल के लिए कई हजार से कई लाख तक लेने की कुव्यवस्था, कोई नई बात नहीं है। इसमें सरकार का हाथ नहीं। अल्तमस कबीर जैसों ने अंतिम दिन क्या कांड किए हैं, वह भी हमने देखा है।

न्यायाधीशों की संपत्ति के ब्यौरे का पेज सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर खाली पड़ा है। तुम कौन सा राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा हो कि तुम्हारी संपत्ति के बारे में लोग जान जाएँगे तो कहर टूट पड़ेगा? जबकि पारदर्शिता की दृष्टि से देखा जाए तो जजों को तो हर तरह के संदेह से परे होना चाहिए।

जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि जज होली काउ नहीं हैं, होली काउ केवल गौ माता ही रहेंगी। जो इनके इन कुकृत्यों और कुतर्कों का समर्थन करते हैं, वो भ्रष्टाचरण के समर्थक हैं या उनका कोई अजेंडा है।

साभार:अजीत भारती-(ये लेखक के अपने विचार है)

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