Positive India:Rajkamal Goswami:
पूस की रात कहानी को लिखे हुए एक सौ एक साल हो गए । हरकू ठंड से बचने के लिए कंबल खरीदने के लिए पैसा जुटाता है जो क़र्ज़ा चुकाने में व्यय हो जाता हैं । पूस की कड़क ठंड में एक दोहर और जबरा कुत्ते के सहारे वह गेहूं की फसल नीलगायों से बचाने के लिए खेत पर सोता है पर पूस की रात की बर्फीली हवाओं को झेल नहीं पाता । कड़कड़ाती ठंड में वह खेत छोड़ कर पड़ोस के बाग में अलाव जला कर ज़िंदा रहने की कोशिश करता है , ज़बरा भूँकता रहता है और नीलगायों का झुंड खेत चट कर जाता है ।
सुबह फसल को सफ़ाचट देख कर हरखू की पत्नी दुखी होती है पर हरखू खुश होता है कि कल से ठंड में खेत पर नहीं सोना पड़ेगा । और हमेशा की तरह वह मज़दूरी से ज़िंदगी बसर कर लेगा ।
प्रेमचंद इस कहानी को किसान की ग़रीबी पर केंद्रित करते हैं पर मेरे लिए इस कहानी की समस्या नीलगाय है । सौ साल पहले तन के कपड़ों और ओढ़ने के कंबल का भले टोटा हो पर आज यह स्थिति नहीं है । कंबल भी है किसान भी है पर नीलगाय और बनैले सुअरों का कोई इलाज नहीं है ।
भूमिहीन मज़दूरों को पहले भी बहुतेरे काम थे । ग्रामीण महिलाएँ सुबह सवेरे धनवान किसानों के घर में चक्की पीसती थीं और अपने लिए पिसान का इंतज़ाम कर लेती थीं । चारा मशीन से लेकर खेतों की कटाई और पशुचारण से भी गुज़ारा होता था और अब तो गाँव में मनरेगा आने के बाद मज़दूरों को पैसे का वैसा टोटा नहीं रहा । फिर मुफ़्त राशन वाला राशनकार्ड दारू पीने के भी काम आता है ।
पता नहीं क्यों प्रेमचंद ने कहानी के प्रमुख खलनायक नीलगाय को बख़्श दिया । इसके बस नाम के आगे गाय लगा है वरना दौड़ने में यह घोड़े से कम नहीं है । वैज्ञानिक इसे हिरन और बकरी के कुल में रखते हैं जिनके दो थन होते हैं । आजकल तो बनैले सुअरों ने किसानों की समस्या बढ़ा रखी है । चरने के बाद गन्ना फिर भी उग सकता है पर सुअर तो फसल को जड़ से खोद डालते हैं ।
प्रेमचंद हमेशा ग़लत खलनायक चुनते हैं । कहानी सवा सेर गेहूँ में उनका खलनायक एक विप्र जी हैं जिससे किसान एक साधु के भोजन के लिए गेहूँ उधार लेता है और विप्र उस किसान को बंधुआ मज़दूर बना लेता है । दुनिया जानती है सूद पर पैसा उठाने का काम महाजन करता है लेकिन प्रेमचंद को विप्र महाराज ही मिलते हैं जो उस काम के लिए दोषी ठहराए जाते हैं जो उनकी जाति को आवंटित नहीं है।
इसी तरह कहानी निजात या सद्गति में बेचारा दुखी चमार अपनी बेटी की सगाई के लिए मुहूर्त निकलवाने पंडित जी के पास जाता है तो पंडित जी उसे लकड़ी की ऐसी गाँठ चीरने के लिए देते हैं कि वह बेचारा कुल्हाड़ी चलाते चलाते प्राण त्याग देता है । सगाई का मुहूर्त तो दूर वह बेचारा अपने प्राण ही गँवा देता है ।
प्रेमचंद लाजवाब कहानीकार हैं । हमारे जैसे तुच्छ पाठक साहित्य के इस सूर्य को दीपक दिखाने जैसी हिमाक़त नहीं कर सकते । पर खलनायकों का उनका चयन विस्मित करने वाला है ।
पूस चल रहा है और नीलगाय अब भी फसल चर रही हैं । आज हरखू के पास न तापने के लिए पुआल की कमी है न ओढ़ने के लिए कंबल की ।
साभार:राजकुमार गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)