Positive India:Kumar S Charit:
संसार में एक साथ, एक दिन, एक ही समय इतना दुलार, इतना प्यार, इतनी श्रद्धा, इतना वात्सल्य किसी को न मिला होगा।
संसार का सबसे धनिक और निर्धन दोनों रो रहे थे।
सर्वाधिक लोकप्रिय और सबसे उपेक्षित, दोनों ही सुबक रहे थे।
सर्वोच्च ज्ञानी और सबसे मूढ़मति, दोनों एक साथ श्रद्धानवत थे।
सबसे शक्तिशाली और नितांत दुर्बल, दोनों ही कृतकृत्य थे।
सबसे चालक और सबसे सरल, सबसे वाचाल और मूक, नवजन्मे शिशु और मरणासन्न वृद्ध, पशु पक्षी, भृंग, कीट, चर अचर, जड़ चेतन, सदात्मा दुरात्मा, प्रत्येक नत था।
और इन दोनों तटबंधों के मध्य हर कोई, कहीं न कहीं स्वयं को एडजस्ट कर उस चिदानंद से एकाकार हो रहा था।
यह वर्णनातीत है। #आपस्तम्बब्रह्मपर्यंत प्रत्येक सम्मोहित दिखा। वाणी जवाब दे गई। कहने को कुछ न सुझा तो अश्रुधारा बह चली।
आप कल्पना कीजिए उस विराट व्यक्तित्व की, जिसकी आहट मात्र से देश दुनिया डगमग हो गई थी।
मुझे पूरा विश्वास है, इस जनसम्मर्द में देव,दानव, यक्ष, गन्धर्व ब्रह्मा, विष्णु, नारद, हनुमान, विभीषण, समस्त अजर अमर कहीं न कहीं से निहार रहे थे और हमारी ही तरह अश्रुपात कर रहे थे।
जो इस रहस्य को नहीं जानते वे तो फिर भी कुछ सामान्य दिखे, जो प्रभु की माया के जरा भी ज्ञाता हैं, उन्हें तो एक मूर्च्छा सी ही आ गई है। शरीर अभी भी रोमांचित है। हर्षातिरेक से रोमहर्षण हुआ जा रहा है और कहने को कुछ बचा ही नहीं।
जो स्नेह, जो श्रद्धा, जो वात्सल्य इस समय बह रहा है, हिन्दुओं सहित उस मानवमात्र की युगों युगों से भुगती गई पीड़ाओं पर मरहम जैसा लगा और इसलिए वे सभी अनायास ही एकाकार हो गए।
एक महाप्रवाह आरम्भ हो गया है। साक्षात भागीरथी सा पवित्र और सात्विक भावातिरेक….. सबके एकाकी प्रयास अनायास ही सामूहिकता में आ मिले और एक नद उमड़ पड़ा है।
मै पक्का आश्वस्त हूँ, अब हर दिन एक नया, शुभ, ऐतिहासिक समाचार आएगा और इस प्रवाह में वह सब उजड़,उखड़,नष्ट विनष्ट हो जाएगा जो इसके विपरीत बह रहा था।
हे प्रभु! आप यहीं थे, हम ही अंधे थे, हमारे ही प्रयासों में कमी रह गई जो इस शुभावसर को आने में इतना समय लगा।
आज कहने को कुछ नहीं।
हम आपके हैं नाथ! हे नाथ! निश्चय ही आपकी महिमा उससे अनंत गुना अधिक है जितना पढ़ा सुना था।
जय हो।विजय हो।
साभार:कुमारsचरित-(ये लेखक के अपने विचार हैं)