मजदूरों के पलायन और बेबसी पर डाक्टर अर्पण जैन की पोस्ट
Dr.Arpan Jain becomes Double Corona Warrior.
Positive India:Dr.Arpan Jain:
आज नेशनल हाइवे पर । भिलाई से रायपुर ऑफिस कार ड्राइव कर जा रहा था। स्पीड रही होगी 60 के आसपास, जो एनएच पर सामान्य ही है। लेकिन मेरी नजरों के सामने कुछ ऐसा था जो असामान्य था। कुछ विचलित करने वाला।
मैं देख रहा था, मेरी कार के आगे एक ट्रक चल रहा है। माल लदा है। माल पर इंसान लदा है। इंसान पर बच्चे लदे हैं। बच्चों पर भूख और प्यास लदी है। मजदूरों के पैर ट्रक से लटके हुए हैं। तलवों में छाले इतने कि मवाद रिस रही है। पैदल चलने के बाद दर्द इतना कि पालथी लगा कर बैठना मुश्किल। लेकिन ये सब मेरे लिए असामान्य नहीं था, रोज ही टीवी पर ,अखबार में देख रहा था। इस दृश्य ने मुझे विचलित कर दिया।
सहसा मुझे एक मजदूर महिला की गोद मे 2 साल का मेरा बेटा दिखाई दिया। मेरा बेटा! वही जिसने मुझे घर से निकलते वक्त बाय किया और गाल में प्यार किया था। पर ये कैसे हो सकता था! बात यहीं नही रुकी, एक दो और महिलाओं की गोद मे नजर गई, फिर मुझे अपना बेटा दिखाई देने लगा। मैं समझ गया, बच्चों की हालत देखकर मैं विचलित हो रहा था, और हर बच्चे की शक्ल देखकर लग रहा था कि मुझसे पानी मांग रहे हैं। दो तीन साल के बच्चे अपनी जीभ बार बार होंठ पर फेर रहे थे। अब गाड़ी ड्राइव करना मुश्किल हो रहा था। ऐसा लगा जैसे दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी देख रहा हूं। मैंने गाड़ी का ग्लास नीचे किया और स्पीड इतनी कि मजदूरों से बात हो पाए। हालांकि ये सब रिस्की बहुत था। पर जब बच्चे प्यास से मर रहे हों तो खुद की फिक्र नहीं रही। गाड़ियों के शोर के बीच मैंने पूछा, कहां से आ रहे हो और बच्चे बेहोशी जैसी हालत में क्यों हैं? जवाब मिला: बाबू जी तेलंगाना से पैदल चलकर आ रहे हैं, करीब 4 सौ किलोमीटर। अभी इस ट्रक वाले ने बिठाया है, झारखंड जाना है। आखिरी बार रात में बच्चों ने पानी पिया था पर खाने को कुछ भी नही है , पैसे भी नहीं। मैंने मोबाईल में टाईम देखा 11 बज रहा था। 12 घन्टे से बच्चे प्यासे हैं, 40 डिग्री में ट्रक के ऊपर बैठे हैं, भूखे भी हैं।
घर मे हमारे बच्चों के उठते ही दूध, बिस्किट , फल शुरू हो जाते हैं। ये सब दिमाग मे चल ही रहा था कि मैंने गाड़ी की स्पीड इतनी बढ़ा दी कि ट्रक के क्लीनर वाली खिड़की के बराबरी तक पहुँच गया। क्लीनर को इशारा किया कि मैं कुछ कहना चाहता हूँ। वो पूछा- क्या बात है। मैं बोला ट्रक ड्राइवर को बोलो थोड़ा धीरे चलाएगा। मैं स्पीड पकड़ता हूं और आगे कहीं खड़ा मिलूंगा तो रोक देना। वो मेरा मतलब समझ गया और मुस्कराते हुए हामी भरी। फिर कार की स्पीड इतनी हुई जो नही होनी चाहिए थी। पर मैं ट्रक आगे निकले उसके पहले किसी दुकान पर पहुँचना चाहता था।
5 मिनट में ही भिलाई 3 से कुम्हारी पहुँच गया। एक दुकान में गाड़ी लगाई। हड़बड़ी में कहा भैया पानी है क्या, उसने मेरी तरफ अपनी पानी की बोतल बढ़ा दी। अरे भैया पानी के पाउच कितने हैं आपकी दुकान में? मैंने पूछा । लगभग दो सौ होंगे दुकानदार बोला। मैंने कहा सब दे दो। फिर पूछा बिस्किट कितने हैं? बोला जितने आपको चाहिए। दो कार्टन पारले जी दे दो। और ये जो काउंटर पर जितने ब्रेड के पैकेट हैं, सब पैक करो जल्दी से। दुकानदार हैरान था। बोला भाई साहब हुआ क्या , इतनी हड़बड़ी आखिर इतना सामान कहां? मैं शॉर्ट में बताया कि एक ट्रक पीछे आ रहा है, उसमे बच्चे भूख, प्यास से तड़प रहे हैं। आप जल्दी से पैसे बताओ। भाई साहब इसका क्या पैसा लूंगा अब। उसकी भी आंखों में आंसू थे अब। बोला रहने दीजिए। जबरन देने पर सिर्फ 7 सौ रुपये लिये। करीब 1 हजार का सामान तो था ही।
इतने में देखा कि ट्रक भी आ रहा है। मैंने हाथ दिखाया और रुकने का इशारा किया। एक मजदूर नीचे उतरा और पूरा सामान लेकर फौरन वापस ऊपर। ये जल्दबाजी बच्चों के लिए थी। पानी पाऊच की बोरी ऐसे फाड़ी कि कई जन्मों के प्यासे हों। उनके खुद के होंठ भी प्यास से चिपक रहे थे। लेकिन बच्चों का गला पहले तर किया। इधर मुझे एहसास हो गया कि नर पूजा ही नारायण पूजा है। बच्चों के हलक से पानी जा रहा था और मैं और वो दुकानदार गीली आंखों से एकटक देखे जा रहे थे।
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पुनश्च: सिर्फ सरकार पर निर्भर मत रहिये। ईश्वर ने यदि सक्षम बनाया है तो ये त्रासदी खुद सरकार बनने का समय है।
(रायपुर से डाक्टर अर्पण जैन के द्वारा की गई पोस्ट)
Courtesy:From the Facebook wall of Dr.Rakesh Gupta.