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ममता के पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा चुनाव आयोग और लोकतंत्र का उपहास हैं

पश्चिम बंगाल मे जो हो रहा है वो तो सीधे सीधे लोकतंत्र का उपहास है।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:चुनाव मे चुनाव आयोग की भूमिका काफी प्रभावशाली रहती है। पर क्या कारण है कि आयोग अपने को निःसहाय और लाचार प्रदर्शित कर रहा है? ये आयोग नही बल्कि उस व्यक्ति विशेष की कमजोरी है जो उस पद पर आरूढ़ है। जिसे उस पद के संवैधानिक अधिकार के बारे मे मालूम हो फिर भी अगर उनका उपयोग न करे तो ये उनकी लाचारी को प्रदर्शित करता है। किसी समय इस पद पर टी एन शेषन भी रहे है। उस समय आयोग क्यो इतनी प्रभावशाली भूमिका मे था? क्या कारण था कि यही राजनीतिक दल आयोग के सामने अपने को लाचार पा रहे थे? अपने राजनैतिक फायदे के लिए आयोग को फिर तीन सदस्यीय बना दिया गया, जिससे कोई एक बंदा निरंकुश न हो जाए। आज तो ये स्थिति है कि अपने अधिकार के संज्ञान के लिए सर्वोच्च न्यायालय से दिशा निर्देश लेना पड़ता है, तब कही जाकर चुनाव आयोग जागता है और कार्यवाही करता है। पर ये कार्यवाही भी नाकाफी है। यही कारण है जो टी एन शेषन के समय दिखाई देता था अब उसका कही नामों भी नही है ।
चुनाव के समय कितनी भी गंभीर बदजुबानी रही हो, पर सजा नाम मात्र की ही मिलती हैं, तो लोग क्यो डरने लगे? पश्चिम बंगाल मे जो हो रहा है वो तो सीधे सीधे लोकतंत्र का उपहास है । वहां की सरकार के लिए न केंद्र सरकार मायने रखती है न चुनाव आयोग ? आयोग के दिशा-निर्देश की जिस तरह धजजिया उड़ाई जा रही है, वो जहां दुखद है वही चिंताजनक भी है।
आयोग जिस तरह से कर्मचारीयो पर सख्ती करता है, कई बार तो गंभीर रूप से बीमार कर्मचारीयो को, यहाँ तक कभी-कभी तो अपनों के दुखद निधन के बावजूद उन्हें अपनी ड्यूटी करनी पड़ती है। वहां किसी की भी सुनवाई नही होती । फिर यही रवैया यहां क्यो नही दिखाया जा रहा है ? नेताओ के नजरों की इनायत पाने के लिए कुछ लोग पूरे आयोग की सांख ही दांव पर लगा दे रहे है । आयोग कही से भी काम करते नही दिखता रहा है ।
पश्चिम बंगाल मे जो अराजकता है वह चुनाव आयोग के ढुलमुल नीति के चलते हुआ है ।अराजकता की स्थिति मे किसका रोल है ये भी पता नही चलता। हालात ये हो जाते है कि केंद्र सरकार मूकदर्शक बन कर खड़ी रहती है। वही सर्वोच्च न्यायालय अपने पाले मे गेंद आने का इंतजार करता रहता है । और आयोग अपने को स्थिति नियंत्रण पाने मे अक्षम पाता है। कुल मिलाकर हालात पर नियंत्रण कौन करे, ये फुटबाल के समान हो जाता है जहां अपने सीमा पर आने पर लात मारकर दूसरे के पाले मे भेज दिया जाता है।
राजनैतिक दलो द्वारा असामाजिक तत्वों को पनाह देने के कारण ही सियासत इस गर्त पर पहुंच गई है । करीब करीब सभी नेता और दल कांटे से कांटा निकालने के पक्ष मे चल रहे है। इसका मात्र यही एक उपाय है कि आयोग अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए बगैर भय काम करे और नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाये। इतना ही नही दलों की मान्यता तक रद्द कर दी जाए, देखो फिर आयोग का खौफ कैसे सर चढ़ कर बोलता है । चेतावनी के लहजे मे बात करने वाले नेता और पार्टीया अपनी लक्ष्मण रेखा लांघने के बारे मे दस बार सोचेंगे । आवश्यकता है एक सशक्त चुनाव आयोग की, जो उसके पदाधिकारियों से बनती है। वहीं आयोग को पूर्ण स्वायत्तता मिलनी चाहिए,यही इसका एकमात्र समाधान है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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