कोरोना कहर में मजदूरों की मजबूरी पर रोटी सेंकती राजनैतिक पार्टियाँ
राजनैतिक पार्टियाँ का एक ही मकसद, कोरोना के बीच राजनीति करना।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
कोरोना के महामारी ने समाज के हर समस्या, जो छोटी रहती है, कैसे बड़ी बन जाती है, जो इससे प्रभावित हुआ है वही जानता है । मीडिया को वही खबर आकर्षित करती है जो काफी मार्मिक हो । कुल मिलाकर एक तरह से सब लोग मदर इंडिया जैसे पिक्चर से मिलते जुलते दृश्य बनाने में वयस्त है । टीआरपी का लोभ छूटता नहीं है । कोई भी चैनल खोलो मजदूरों के परेशानियों से भरा पड़ा हैं । ऐसी बात नहीं है कि ध्यान न दिया जाए । पर एक ही बात को सबेरे से शाम तक दिखाने से क्या समस्या हल हो जायेगी ? मीडिया भी अप्रत्यक्ष राजनीति करने से बाज नहीं आ रहा है । संवेदनशील विषयों पर ही दुकानदारी निर्भर है ।
पर न किसी मीडिया हाउस ने, न कभी किसी समाचार पत्रों के समूह ने किसी आम आदमी के परेशानियों की शायद ही कोई सुध ली हो। शायद ये लोग परेशानी मुक्त है या फिर इनके पूछ परख से कोई फायदा न होता हो ।
मजदूरों को उनके घर लाया जाए इस पर कोई आपत्ति नही है । पर लाने के लिए होने वाली राजनीति जब समाचारों का हिस्सा बनती हैं तो इनकी लार यही टपकती है । दुख तो इस बात का है कि कोई दल व नेता या टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग ये बोलते कि मजदूर पटरियों में क्यो सोये। उसकी कम से कम निंदा तो करते। पर एक्सिडेंट के बाद जमा किये हुए बाल्टी भर आंसू को बहा बहा कर सिर्फ राजनीतिक माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही थी । नेताओं के तो यह हाल है जहां वो मनमाफिक काम कर सकते है, जहां उनका शासन है । पर नीयत ही ठीक न हो तो कोई काम कैसे करे ? जब मजदूरों को ही उनके घर पहुंचाना मकसद है तो फिर वो मजदूर छत्तीसगढ़, राजस्थान के हो तो क्या आपत्ति ? सेवा करना है वही बस पहुंचा देते। पर सेवा तो उत्तर प्रदेश में करना था । राजनीति तो वहीं से करनी है ।
कुल मिलाकर एक ही मकसद, कोरोना के बीच राजनीति करनी है। अगर यही काम महाराष्ट्र और राजस्थान में किया जाता, तो अभी तक मजदूर अपने घर पहुंच जाते । क्या उन्हें नही मालूम था कि योगी बगैर जांच-पड़ताल के अनुमति नहीं देते । मै आम आदमी की बात कर रहा था, थोड़ा विषयानंतर हो गया था । अभी मेरे एक परिचित लाॅकडाउन में अपने लड़की के यहां फंस गये। इस दरम्यान उन्होंने अपने माता-पिता को अपने बहन के यहां छोड़ दिया । जिसे वो लौटकर उन्हे ले आते । पर दुर्भाग्य से माता का देहावसान हो गया । लाॅकडाउन के कारण वे जाने में असमर्थ रहे। वही भाई विदेश में रहने के कारण, वो भी नही पहुँच सका । इस विपदा मे वे अपने को असमर्थ पा रहे हैं पर कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं । कोई राजनीतिक सेलिब्रिटी होते तो समाचार बनता । आम लोगों की ऐसी तकलीफें कहा दिखेंगी ? कई जगह तो पति अलग जगह है तो पत्नी अलग जगह । कोई क्यो सुध ले ? क्योकि वो वोट बैंक नही है ।
एक आम आदमी को दुख होता है इन सब बातों से पर यही राजनीति है। यह राजनीति का ही फल है जिसने कोरोना को एक लाख के उपर पहुंचा दिया है । खुलकर लोगों के भावनाओ से खेला गया। आज स्थिति ऐसी है पूरे मजदूर सड़क पर है और हादसे का शिकार भी हो रहे है । समस्या का हल निकले यही लोगों की भी इच्छा है । बस अभी इतना ही
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)