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राजनैतिक पार्टियाँ ही भ्रष्टाचार की जननी ही है।

भारत की राजनीति मे कोई दल नही है जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप न लगा हो।

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Positive India:भ्रष्टाचार पर आज मै कुछ अलग तरह से लिख रहा हू । आज हर पार्टी भ्रष्टाचार पर बात करती है तो सिर्फ सामने वाली पार्टी के भ्रष्टाचार की ही बात होती है । वो एक दृष्टि से जायज है । पर ये लोग जब पहले अपने गिरेबान मे झांकने की कोशिश करेंगे उस दिन ही हम सही मायने मे इस मामले से निजात पाने मे एक कदम आगे बढ़ेंगे । पर दुर्भाग्य यह है कोई भी ये सफाई अपने घर से चालू ही नही करना चाहता । और चाहते है कि पहले सामने वाले का ही घर साफ हो। यही मानसिकता करीब करीब सभी नेताओं मे है और प्रायः सभी दलो मे है । यही कारण है कि इस पर लोगों को किसी पर भी विश्वास नही रहा । कोई भी सरकार जब हारती है तो इमानदार दिखाई देने वालों के चेहरे मे कालीख दिखने लगती है । इसमे एक बात माननी पड़ेगी राजनीति मे सामंजस्य यहां पर दलो का आपस मे दिखने लगता है । ये भ्रष्टाचार के मामले मे सिर्फ बदनाम करने तक ही सीमित रहता है । अगर न्यायालय मे जाता भी है, तो इतना मामला खींच जाता है कि बुढ़ापे का हवाला देकर सजा माफ करने की बात कही जाती है । पुनः मुद्दे पर, भ्रष्टाचार के बारे मे सिर्फ चुनाव के समय ही दहाड़ सुनाई देती है । पर अपने नेताओ और अपने दल के लोगो की बात कभी नही की जाती । पब्लिक डोमेन मे जिन लोगो के नाम चल रहा है उसके बाद भी ये दल उसी बंदे को टिकट देकर उस पर विश्वास करते है, उस वक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की नियत दिखाई देने लगती है । यही हाल सभी पार्टीयो का है इनकी इस मामले मे प्रतिबद्धता सिर्फ बहस और आरोप लगाने तक सीमित रहती है । जैसे मैंने देखा है, किसी भी इमानदार व शिक्षित लोगो को राजनीति मे लाने की कोशिश कोई नेता कभी नही करता । सभी दलो को पार्टी फंड चाहिए, कहाँ से आयेगा? फिर वही दान दाता सामने आते है जिनके पास अथाह धन संपदा रहती है, जो सामाजिक कार्य के लिए तो उपलब्ध नही होती पर राजनीति के लिए इनका दिल किसी दरिया से कम नहीं रहता है । पर आज ऐसे लोगो को वो क्यो देने लगे? फिर इसका पूरा फायदा ये जमात उठाती है,और फिर कई लोग तो नेता बनकर हमारा नेतृत्व करते है । क्या एक आम आदमी को टिकट मिल भी जाए तो क्या चुनाव लड़ पाएगा? कहा से संसाधन आयेगा ? कुल मिलाकर यह लोकतंत्र ही भ्रष्टाचार की जननी ही है। राजनैतिक पार्टियाँ ही इसकी पोषण हैं राजनैतिक व्यवसाय करने वाले ही एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर हमारा सिर्फ टाइम पास करते है । यही हमारे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की राष्ट्रीय नीति है । ऐसे मे इस व्यवस्था पर किसे दोष दे । राजनीति कोई समाज सेवा है ये बात गले से नही उतरती यह वास्तविकता स्वीकार करना होगा कि ये सिर्फ व्यवसाय है । अब इसमे कौन कितना इस पर व्यवसाय करता है यहीं भ्रष्टाचार का मापदंड तय होता है । भारत की राजनीति मे कोई दल नही है जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप न लगा हो । पर तकलीफ तब होती है जब भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले दल के हिसाब से उसकी रणनीति उसी हिसाब से तय होती है । अगर दल का है तो उसके बचाव के लिए आना और ढाल बनकर खड़ा होना भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता को ठगने के समान ही है । करीब करीब यह हाल सभी दलो का है । कुल मिलाकर भ्रष्टाचार मे यह स्थिति है हमारे दल भ्रष्टाचार नही करते, सामने वाले करते है । यही भ्रष्टाचार से मुक्त करने की राष्ट्रीय नीति है । इसलिए हम आज भी इस मामले मे वही खड़े है । देश ने भी यह मान लिया की बगैर इसके कुछ काम नही हो सकता । यही आज का पूर्ण सत्य । इसके आगे और कभी।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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