राजनीतिक मसखरों के राजनीतिक डेथ वारंट पर आज हस्ताक्षर हो गए
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
राजनीतिक मसखरों के राजनीतिक डेथ वारंट पर आज हस्ताक्षर हो गए हैं।😊
5 साल पहले भी प्रधानमंत्री मोदी ने इन राजनीतिक मसखरों का राजनीतिक डेथ वारंट नोटबंदी नाम से जारी किया था। वह राजनीतिक डेथ वारंट भी उत्तरप्रदेश समेत 4 राज्यों के चुनाव के ठीक 5 माह पूर्व ही 8 नवंबर 2016 को जारी किया गया था। याद करिए कि उस समय भी इन राजनीतिक मसखरों को यही लगा था कि उनके हाथ “अलादीन का चिराग” लग गया है। नोटबंदी के खिलाफ अजब गज़ब मातम करने की होड़ में राजनीतिक मसखरों ने फूहड़ता और मूर्खता की सारी हदें पार कर ली थीं। लेकिन 5 माह पश्चात उन सभी राजनीतिक मसखरों को उप्र के चुनावी इतिहास की सर्वाधिक शर्मनाक पराजय के बहुत अपमानजनक दौर से गुजरना पड़ा था। राजनीतिक मसखरे इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति अपने लिए तैयार कर चुके हैं।
अब समझिए कि ऐसा क्यों कह रहा हूं मैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कृषि कानूनों की वापसी पर खालिस्तानी गुंडों, उनके दलाल लुटियन पत्रकारों तथा मोदी विरोध में नीम पागल हो चुके पंचर छाप अनपढ़ों गंवारों ने जमकर जश्न मनाया था।
19 नवंबर से यह झुंड बेसुध होकर हुड़दंग कर रहा है कि मोदी हार गया, मोदी झुक गया, मोदी बैकफुट पर आ गया। इस हुड़दंग में राजनीतिक मसखरों, मूर्खों की भीड़ भी शामिल हो गयी है। यह हुड़दंग कर रहे मूर्खों मसखरों ने 19 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी का वह भाषण ना ध्यान से सुना है, ना ध्यान से पढ़ा है।
आगे बढ़ने से पहले यह स्पष्ट कर दूं कि कोई भी व्यक्ति किसी से माफी तब ही मांगता है जब उसे यह लगता है कि उससे कोई गलत काम हो गया है, अतः उस गलत काम के लिए वह लोगों से अपनी उस गलती के लिए माफी मांगता है। लेकिन 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने उन तीनों कृषि कानूनों की भरपूर प्रशंसा जमकर की थी। अपनी बात आगे बढ़ाऊं उससे पहले प्रधानमंत्री के उस भाषण के सबसे महत्वपूर्ण इन 2 अंशों की याद आप मित्रों को दिलाना आवश्यक है। ध्यान से पढ़िए उनकी इस बात को…
“किसानों की स्थिति को सुधारने के महाअभियान में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे। हमारा मकसद ये था कि देश के किसानों को, खासकर छोटे किसानों को, और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले। बरसों से ये मांग देश के किसान, देश के कृषि विशेषज्ञ, देश के कृषि अर्थशास्त्री, देश के किसान संगठन लगातार कर रहे थे। देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों ने, अनेक किसान संगठनों ने, इसका स्वागत किया, समर्थन किया।मैं आज उन सभी का बहुत-बहुत आभारी हूं, धन्यवाद करना चाहता हूं।
साथियों,
हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्यनिष्ठा से, किसानों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए हैं। भले ही किसानों का एक वर्ग ही विरोध कर रहा था, लेकिन फिर भी ये हमारे लिए महत्वपूर्ण था।”
अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी जिन “छोटे किसानों” से माफी मांगी थी उनकी संख्या उत्तरप्रदेश में 1.85 करोड़ है। यह संख्या उत्तरप्रदेश में किसानों की कुल संख्या 2.33 करोड़ का 92% है। मात्र 2 से 5 एकड़ खेती वाले इन किसानों को सीमांत और लघु किसान कहा जाता है। इन किसानों का मंडी या MSP से कोई लेनादेना नहीं होता। इनकी उपज की किस्मत बिचौलियों और दलालों के गिरोह की बंधुआ बनी रहती है। इन्हीं किसानों की किस्मत बदलने के लिए यह कानून लाए गए थे। जिन्हें लागू नहीं कर सके। इसी के लिए उन छोटे किसानों से उन्होंने माफी मांगी थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में उन खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों का तो जिक्र तक नहीं किया था जो अपने हजार-2 हजार लफ़ंगों के साथ सड़क घेर कर बैठे थे। इन खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने “कुछ लोग” कह कर उस बाधा के रूप में किया है जिन्होंने केवल उत्तरप्रदेश के 92% किसानों की जिंदगी में होने जा रहे सबसे बड़े औऱ सुखद बदलाव को अपनी नंगई और नीचता से रोक दिया है।
हालांकि खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों के झुंड के साथ आज कृषि कानूनों की वापसी पर नाच रहे झूम रहे राजनीतिक मसखरों को 19 नवंबर को दिए गए प्रधानमंत्री मोदी के उस भाषण में निहित उनके राजनीतिक डेथ वारंट के बहुत स्पष्ट संदेश संकेत उत्तरप्रदेश की चुनावी महाभारत में तब समझ में आएंगे जब गाज़ियाबाद से गोरखपुर तक पीएम मोदी,सीएम योगी समेत भाजपा के स्टार प्रचारकों की भारी भरकम टीम अपनी तूफानी रैलियों में खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों के खिलाफ दहाड़ते हुए उन 92% किसानों को यह खुलकर समझाएगी कि इन खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों और राजनीतिक मसखरों की नीचता और नंगई ने तुम्हारी किस्मत हमें नहीं बदलने दी। परिणामस्वरूप 5 माह बाद यही राजनीतिक मसखरे ईवीएम के नाम पर कंडे फोड़ते दिखेंगे। निश्चिंत रहिए।
अंत में यह याद दिला दूं कि 92% (1.85 करोड़) छोटे किसानों का बर्गर, पिज्जा और भांति भांति के उन अन्य पश्चिमी फ़ास्ट फूड से कोई लेनादेना नहीं है जिनकी दावतें खालिस्तानी गुंडों और लफ़ंगों के अड्डों पर होती थीं। इसीलिए 2.83 करोड़ किसानों वाले उत्तरप्रदेश में डकैत अपने धरने में 2.33 हजार किसान भी इकट्ठा नही कर पाया था।😊
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)