Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
वी आई पी कल्चर पर मेरे मित्र डा. शिशिर धागमवार ने लिखा है, अब इसके आगे मैं भी लिखने की कोशिश कर रहा हू । निश्चित ही किसी भी आम आदमी के यहा जब कोई भी बड़ा आयोजन होता है और जब अतिविशिष्ट लोगो की सूची तैयार करने की और बुलाने की बारी आती है तो उस वक्त उसका उत्साह चरम आसमां पर रहता है । इस तरह के आयोजन में मैने देखा है इन अतिविशिष्ट लोगो के समारोह मे आने के बाद पूरा परिवार नतमस्तक हो जाता है और उन्ही के खातिरदारी मे इतना मशगूल हो जाता है कि अपने दूसरे बुलाये गये अतिथियों की जाने अनजाने मे उपेक्षा कर बैठता है । बात यहाँ तक भी होती तो कोई भी बात नही, फिर उनके खाने के लिए उनके साथ आए तथाकथित कार्यकर्ता या कारिंदे कहां खाएं, ये लोग फिर अपने विशेष प्रकार के भोजन का इंतजाम करने मे जुट जाते है । गोल घेरे मे राजनीतिक बातों के साथ भोजन का लुत्फ उठाया जाता है । इनके लिए वहा कितनी भी भीड़ रहे, सबको एक तरफ दरकिनार कर डिशेज उपलब्ध हो जाती है । फिर वहा पर लोगो का पैर पड़ना तथा फोटो खींचने का भी एक आकर्षण बना रहता है ।
कुल मिलाकर एक उस अतिथि की उपेक्षा हो जाती है जो सामान्य होता है । बात यहाँ तक होती तो भी कोई बात नही । पर कुछ लोग ऐसे भी होते है जो आने वाले लोगो के दिये गये उपहार की भी चर्चा करते है । सामान्यतः इस तरह के विशिष्ट अतिथियो का एक उपहार का पैमाना करीब करीब फिक्स रहता है । ऐसे आयोजन मे ये लोग ज्यादातर सौ से दो सौ की राशि तय करके रखते है । ऐसे मे कुछ लोगो को ये नागवार भी गुजरता है कि इतनी कम राशि मे दस लोग निपट गए । बाद मे बताते भी है । पर वहीं दूसरी ओर इन माननीयो के यहां कोई आयोजन होता है तो पहले तुम्हे निमंत्रण भी चुनाव मे जैसे वोट की पर्ची दी जाती है वैसे ही निमंत्रण भेजा जाता है । कई बार ऐसा महसूस होता है कार्यकर्ताओ को निमंत्रण पत्र दे दिया जाता है फिर उसको जिसे बुलाना रहता है बुलाते रहता है । वहीं आयोजन करने वाले को भी मालूम नही रहता किसको बुलाया है । फिर वहा भी दो प्रकार के गेट मिलते जिसमे एक मे सामान्य दूसरे मे अतिविशिष्ट । फिर खाने मे भी वही अंतर। अंदर मे कुंभ जैसी भीड़ जहा एक प्लेट के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है, फिर खिन्न होकर आदमी निकलता है और जो भी रास्ते मे ढाबा दिखाई देता है वहां अपनी भूख खत्म करता है । उपहार देने के भी मामले मे सामान्य आदमी अपने हैसियत से ज्यादा देने की कोशिश करता है जिससे उसे सामने वाला याद रखे । पर जब दाखिल होता है तो कभी कभी बुलाने वाले शख्स अपने अति सम्मानीय के स्वागत मे इतने व्यस्त रहते है की उनके समीप के कार्यकर्ताओ को ही बताकर निकलना पड़ता है । ये वाक्या हर समय होते रहता है । और बाह्य निकलकर अपने ही पैसो से भोजन का लुत्फ लेना पड़ता है । यह है वी आई पी कल्चर ।
लेखक:डॉ.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)