Positive India: Sandeep Tiwari:
मरने के बाद हमारा क्या होता है, यह सवाल मानवता को सदा से परेशान करता रहा है…इसका निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है…विज्ञान कहता है कि देह की मृत्यु के बाद सब कुछ यहीं समाप्त हो जाता है…शरीर से अलग किसी आत्मा या सूक्ष्म देह का अस्तित्व नहीं है… धर्म और अध्यात्म कहते हैं कि मृत्यु के बाद देह मिट्टी में मिल जाती है लेकिन आत्मा का विनाश नहीं होता… जो आत्माएं वीतरागी होती हैं वे संसार के बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर में समाहित हो जाती हैं…राग-विराग, मोह-माया, दुख-सुख और हज़ारों ख्वाहिशों में जकड़े हमारे जैसे लोग प्रेत बनकर अपनी काम्य वस्तुओं, प्रिय लोगों और स्थानों के इर्द गिर्द भटकते हुए किसी पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करते हैं…तर्क तो यह कहता है कि हमारी इच्छाओं, अतृप्तियों, विचारों और संस्कारों से निर्मित हमारी कोई सूक्ष्म देह है भी तो श्राद्ध या पितृपक्ष में अर्पित की जानेवाली संपत्ति, भोजन और कपड़ों की उसे ज़रुरत नहीं होगी…भौतिक देह ही नहीं तो भौतिक उपादानों की क्या आवश्यकता…??
मृत्यु के बाद किये जाने वाले पितृपक्ष जैसे आयोजन व्यर्थ के कर्मकांड के सिवा कुछ नहीं, लेकिन इन कर्मकांडों का भावनात्मक सच भी है…यदि ये भी न हों तो इस व्यस्त, उलझे जीवन में भला कौन किसको याद करता है…मेरी समझ से आस्था और तर्क के बीच का रास्ता तो यह होना चाहिए कि पितृपक्ष के कर्मकाण्डीय पक्ष को खारिज़ कर परिवार के लोग इस अवधि में कुछ देर मिलकर बैठें और अपने प्रिय दिवंगतों की स्मृति में दीये जलाकर उन्हें याद करें…मृत्यु के बाद अगर हमारे पूर्वजों की कहीं उपस्थिति है तो उन्हें यह देखकर खुशी मिलेगी कि उनके अपने सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं…देह से अलग ऐसा कोई अभौतिक अस्तित्व नहीं भी है तब भी पितरों के प्रति हमारी यह श्रद्धा हमें भावनात्मक रूप से समृद्ध तो करती ही है…!!!
पितृ पक्ष में अपने और संसार के समस्त पूर्वजों को नमन और श्रद्धा-निवेदन…
साभार: संदीप तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)