Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आज मै आश्रम के बारे मे आगे लिख रहा हू । स्वामी आत्मानंद जी के व्यक्तितव के बारे मे पहले भी लिख चुका हू । हालात तो ये थे कि जो भी उनके संपर्क मे आता वो उन्ही का होकर रह जाता था । स्वामी जी अपने परिवार मे सबसे बड़े थे । उनका जहां बहुत सम्मान और आदर था। सिर्फ नरेंद्र भैया स्व.डा.नरेन्द्र देव वर्मा को छोड़कर सभी भाई आश्रम के लिए समर्पित हो गये । स्वामी जी के बाद देवेंद्र वर्मा जी रायपुर विज्ञान महाविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे । पर कुछ समय बाद उन्होंने भी सन्यास ले लिया और स्वामी निखिलात्मानंद के नाम से जाने जाने लगे । शायद इलाहाबाद रामकृष्ण मिशन के प्रमुख थे । अभी कुछ समय पहले ही उनका दुखद निधन हुआ । देवेंद्र भैय्या के बाद नरेंद्र भैया(स्व. डा.नरेन्द्र देव वर्मा) खुश मिजाज व्यक्तित्व के धनी, रविशंकर विश्व विद्यालय मे हिंदी के प्रोफेसर थे । वे अपने समय के साहित्यकार व कवि थे । उन्होंने हिंदी के साथ साथ छत्तीसगढी मे भी कविता लिखी । उनके द्वारा लिखी कविता का मंचन “चंदैनी गोंदा” के नाम से मंचन भी हुआ था । उल्लेखनीय है कि नरेंद्र भैया आज के छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के श्वसुर भी है । पर आश्रम के गतिविधियो में वे भी समर्पित थे । मुझे अच्छे से याद है कि स्वामी जी की मां के साथ नरेंद्र भैया के दोनो बच्चे, जिसमे आजकी श्रीमती भूपेश बघेल भी, रोज शाम प्रेयर के लिए, दादी के साथ आश्रम आती थी । दुर्भाग्य से नरेंद्र भैया की भी अल्पायु मे ही निधन हो गया । छ.ग. ने एक अच्छा साहित्यकार व कवि खो दिया । इसके बाद आश्रम में राजा भैया अर्थात राजेन्द्र कुमार वर्मा का आगमन हुआ। राजा भैया भी इंजीनियर थे, पर उन्होंने भी दोनो भाई के साथ कदम मिलाकर, उन्होंने भी उनकी तरह वही राह चुनी और उन्होंने भी सन्यास ले लिया और रामकृष्ण मिशन के स्वामी जी बन गए । इसके बाद ओम भैया जो सबसे छोटे थे । ओम भैया मतलब डा.ओमप्रकाश वर्मा जो रविशंकर विश्व विद्यालय मे मनोविज्ञान (सायकोलाजी) के प्रोफेसर और एचओडी थे । स्वामी आत्मानंद जी का ओम भैया के लिए बहुत स्नेह था । मैंने ओम भैया में लक्ष्मण की भूमिका निभाते हुए देखा है । ओम भैया ने भले सन्यास नही लिया, पर पूरा जीवन अविवाहित रहकर, आश्रम के लिए समर्पित कर दिया । उन्होंने विवेकानंद विधापीठ के माध्यम से गरीब व आदिवासी क्षेत्रो के, ग्रामीण क्षेत्रो के बच्चो के लिए एक बेहतर शिक्षण संस्थान बनाकर समाज सेवा मे एक उत्कृस्ट उदाहरण पेश किया है। वे आज भी कार्यरत है । अभी वे इस विधापीठ के सचिव है ।
इसी के साथ उस समय पंचायत विभाग मे ग्राम सेवक के ट्रेनिंग सेंटर मे प्राचार्य संतोष भैया, संतोष कुमार झा आज के रायपुर रामकृष्ण मिशन के प्रमुख स्वामी सत्यस्वरूपानंद जी है । इनके कार्यो से तो पूरा अंचल परिचित है । स्वामी जी ने स्वामी आत्मानंद जी के अधूरे काम को पूरा किया । यही कारण है कि बस्तर जैसे अंचल के नारायणपुर मे भी इसकी स्थापना कर, आज अपने सामाजिक उद्देश्य मे सफल भी रहे है ।
एक और डा. अशोक कुमार बोर्डिया-एम डी मेडिसिन रायपुर के मेडिकल कॉलेज मे लेक्चरर बन कर आये थे और आश्रम परिसर मे ही रहते थे । अपने माता-पिता के इकलौते लड़के थे । इनके पिता तत्कालीन राष्ट्रपति के चिकित्सा सलाहकार थे । उन्हे बाद मे चलकर पद्मश्री भी मिली । पर अशोक भैय्या ने भी वही राह चुनी और स्वामी बृमहेशानंद उनको नाम मिला । उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र मे बहुत काम किया । आज रायपुर के रामकृष्ण मिशन मे जो चिकित्सा सुविधा दिख रही है उसमे भी उनका बड़ा योगदान था । वे बनारस के रामकृष्ण मिशन मे प्रमुख के तौर पर कार्यरत है ।
जयराम भैया यानि जयराम चंद्राकर अधिवक्ता थे, पर आश्रम मे ही उनका समय व्यतीत होता था; उन्होंने भी सन्यास ले लिया और स्वामी जी बन गए । वे अभी रामकृष्ण मिशन अमरकंटक के प्रभारी है ।
इस लेख के माध्यम से मै भारत शासन से अनुरोध करता हू कि स्व. स्वामी आत्मानंद जी को मरणोपरांत पद्मविभूषण से सुशोभित करे । इनके योगदान को एक तरह से भूला दिया गया है । वही मुख्यमंत्री जी भी इस पर पहल करेंगे । अभी इतना ही । आगे और किसी विषय पर ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)