लोग पूछने लगे हैं आफरीन तो अदालत पर विश्वास करती ही नहीं है?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
अपने ही बनाए जालों में घिर जाना इसी को कहते हैं। आज आफरीन के वे पुराने बयान पूरी मीडिया में रन कर रहे हैं जिसमें वह कहती दिख रही है, मुझे तो न सरकार पर भरोसा है ना ही सुप्रीम कोर्ट पर। बावजूद इनके आका लोग लगातार कह रहे हैं आफरीन का घर क्यों गिरा दिया गया, अदालत किस लिए है। अब लोग पूछने लगे हैं आफरीन तो अदालत पर विश्वास करती ही नहीं है?
इन मजहबी दानवों ने जरूरत पड़ने पर देश के संस्थाओं का इस्तेमाल किया है। बाकी वक्त इनलोगों ने सिस्टम पर अपना भरोसा नाकायम कर रखा था। क्योंकि ऐसे वक्त में ये भीड़तंत्र से काम चला लेते थे। संस्था चाहे विधायिका हो अथवा न्यायपालिका, एक एकोसिस्टम के तहत इन लोगों ने इस्तेमाल किया, लेकिन जब कश्मीर में हिंदू इन्हें पसंद नहीं आए तो इन्होंने भीड़ तंत्र का इस्तेमाल कर उनका सफाया कर दिया। ये वही चीज अब भी चाह रहे हैं, लेकिन आज का भारत इन्हें बड़े तरीके से जवाब दे रहा है।
कांग्रेस ने संसद को द्विसदनीय बनाया, ताकि सरकार जब भी बदले लोकसभा में सरकार कंफर्ट हो जाए, लेकिन राज्यसभा में तो सरकार को चलने नहीं देना है। ताकि इनकी विफलता से दूसरी बार फिर कांग्रेश सत्ता में आए। ईडी, सीबीआई, आईबी सारी संस्थाएं इन्होंने एक चक्रव्यूह की तरह बना कर रखा था। जिसमें कोई अभिमन्यु प्रवेश तो कर जाता, लेकिन सफल नहीं हो पाता था। नियति ने कृष्ण को चुना। आज उनके ही बनाए संस्थानिक चक्रव्यूह में वे स्वयं फंस चुके हैं।
बुलडोजर को राजनीतिक उपकरण के रूप में कांग्रेश प्रधानमंत्रियों ने भी इस्तेमाल किया है। सारे रास्ते उन्होंने बता रखे हैं, कैसे शासन चलाना है। लेकिन बावजूद इसके बड़े संवैधानिक तरीके से आज की सरकारें इन उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं। इसके बाद भी बौखलाहट देखिए। बौखलाहट इतनी कि जिस समुदाय ने भीड़ को अंतिम सत्य माना है, वही आज लोकतांत्रिक संस्थाओं की दुहाई दे रहा।
साभारः विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)