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शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय की दुर्दशा भाग 2

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुर्वेद महाविद्यालय को जो तरक्की करनी चाहिए थी वो नही हुआ । इसके भी बहुत कारण है । पहले तो यह विद्यालय किसी न किसी कारण से चर्चित रहा है । यहाँ के छात्रो की राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी यह चर्चा मे रहा । वहीं छात्रसंघ के गतिविधियों में भी यहां के विद्यार्थी बढचढ कर भाग लेते थे । हमारे समय मे विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव मे शुरू के दो विश्वविद्यालय अध्यक्ष यहीं से बने थे । जिसमेँ स्व. डा. प्रकाश शुक्ला का आपातकाल के बाद के चुनाव मे जनता पार्टी के लिए, छात्रो के सहयोग के लिए,उनका बहुत बड़ा योगदान था । छात्र भी मेडिकल कॉलेज से पढाने आने वाले से गंभीरता से, रूचि के साथ क्लास अटैंड करते थे।

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पर यह कटु सत्य है कि मूल विषय आयुर्वेद के विषयो मे इंटरेस्ट पैदा करने मे शिक्षक लोग भी कामयाब नही रहे । वहीं महाविद्यालय मे प्रशासन की कमी एक आम बात रही है । कोई भी प्राचार्य रहा हो, आज तक कोई उल्लेखनीय काम महाविद्यालय के लिए नही दिखता, जिसे याद रखा जा सके । अभी का तो मेरे को नही मालूम पर हमारे समय मे किताब देखकर पढाना आम बात थी । इसलिए छात्रो मे वो रूचि जागृत ही नही हो पाई । छात्रो का आंदोलन एक आम बात थी । किसी न किसी मांग को लेकर छात्रो ने बड़े बड़े आंदोलन किये, कई बार तो कुछ छात्र गंभीर रूप से घायल भी हुए । मांगो की लड़ाई आज तक चल रही है । सन 1978 के प्रदेश व्यापी आंदोलन के चलते चार पांच दिन मै भी भोपाल जेल मे था । पहले तो वेतन की असमानता सबसे बड़ा कारण रहा है । वही इंटीग्रेटेड चिकित्सक के साथ शुरू से ही अन्याय हुआ है, जो आज तक चल रहा है । इस पाठ्यक्रम को क्यो चलाया जा रहा है यह भी समझ से परे है । ये लेख आगे भी जारी रहेगा।

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लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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