Positive India:Neelima Mishra:
“माँ तुम कहाँ हो ,पापा देखो ना ये अँकल मुझे बहुत मार रहे हैं, पापा मुझे बहुत दर्द हो रहा है । देखो ना मम्मी, इन लोगों ने मेरी दोनों आँखें निकाल ली हैं। अब मैं कैसे आप लोगों को देखूँगी? माँ मेरे दोनों हाथ उखाड़ लिये हैं .अब मैं कैसे आपकी ऊँगली पकड़ कर चलूँगी पापा? पापा मुझे बचा लो।”
लो! आज फिर एक मासूम जान नीच नराधम पशुओं की शिकार बनी। अब फिर कुछ दिन टी.वी. न्युज चैनलों में घड़ियाली आँसू बहाए जाएंगे ।सेलिब्रिटीज़ संवेदना से भरे मैसेज ट्विट करेंगे। सारे अख़बार चीख़ चीख़ कर न्याय की दुहाई देंगे। सोशल मीडिया में परिचर्चा का विषय बनेगा। कैंडल मार्च होगा । फिर भारत का लचर क़ानून आश्वासन देगा ,न्याय की दुहाई देगा ।
दोषियों को फाँसी की सज़ा सुनाई जायेगी और फिर मानवता की दुहाई देकर दूसरा पक्ष फाँसी को उम्रक़ैद की सज़ा में बदलने की अपील करेगा। उसके बाद सब टाँय टाँय फिस्स।
फिर कोई मासूम बलात्कार या अमानवीय क्रूरता का शिकार होगा और फिर से वही शोक संवेदना की प्रक्रिया शुरु हो जायेगी।
घृणा होने लगी है मुझे अपने इन्सान होने पर या नारी होने पर। क्या मिलेगा हमें कैंडल जला कर,धरना देकर या नारे लगाकर? क्या क़ानून उस मासूम बच्ची को, दुख से बदहवास माता पिता की गोदी में डाल पायेगा? अगर इसका जवाब नहीं है तो फिर उन सारे अपराधियों को जेल से पुलिस संरक्षण से खींच निकालो और सरे आम गोली मार दो,नपुंसक बना दो। केवल बहस या परिचर्चा करने से कुछ नहीं होने वाला है। घटनायें घट जाती हैं और हम सिर्फ कारण ढूँढते रह जाते हैं। आप ऐसे विकृत और अपराधी मानसिकता वाले व्यक्ति को कितनी भी नैतिक शिक्षा दो,अपराध इनके रग रग में दौड़ता है । इसलिये अपने मासूमों की रक्षा के लिये सतर्क रहो।
लेखिका: नीलिमा मिश्रा( यह लेखिका के अपने विचार हैं)