Positive India:Dayanand Pandey:
भोजपुरी में एक प्रसिद्ध कहावत है कि इहै मुंहवां पान खियावाला और इहै मुंहवां , पनही। तो अपनी बदजुबानी के जुर्म में पनौती की पनही खाने के लिए अभिशप्त है कांग्रेस। पनही मतलब , जूता। तो इस पनही से मुक्ति के लिए अव्वल तो कांग्रेस को अपने सभी प्रवक्ताओं को बर्खास्त कर देना चाहिए। नागफनी से भी ज़्यादा जहरीले और चुभने वाले , कुतर्की कांग्रेस प्रवक्ताओं ने निरंतर कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाया है। पढ़े-लिखे , विनम्र और समझदार लोगों को प्रवक्ता बनाना चाहिए। जो कुतर्क और अहंकार को अपना गहना न बनाएं। दूसरे , ज़मीन से पूरी तरह कटे हुए , नकारात्मक सोच के धनी , समाजद्रोही वामपंथी लेखकों और पत्रकारों को अपनी गुड बुक से निकाल कर इन्हें जूतों की माला पहना कर फौरन गेटआउट कर देना चाहिए। बहुत नुकसान किया है , इन्हों ने कांग्रेस का। बेतरह नुकसान किया है। करते ही जा रहे हैं।
तीसरे , राहुल गांधी और प्रियंका को लंबे अवकाश पर भेज कर , पूरी तरह निष्क्रिय बना कर , लोकसभा चुनाव से बहुत दूर रखना चाहिए। अगर ऐसा कुछ हो जाता है तो कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक विपक्ष की भूमिका शायद प्राप्त कर ले। बाक़ी राजनीतिक अपमान का पट्टा तो कांग्रेस के गले में पत्थर की तरह लटका हुआ है ही। एक बात और कि कभी कमलेश्वर जैसे बड़े लेखक ने कांग्रेस के लिए अस्सी के दशक में एक नारा लिखा था : जात पर न पात पर , मोहर लगेगी हाथ पर ! इस नारे पर लौट आना चाहिए।
ग़नीमत बस यही रही कि उत्तराखंड के टनल से बाहर निकले 41 मज़दूरों के निकलने का प्रमाण राहुल गांधी , केजरीवाल टाइप या अन्य जहरीले क्षत्रपों ने नहीं मांगा। बाक़ी तो उन्हें प्रतीक्षा मज़दूरों के शव निकलने की थी। ताकि पनौती का पहाड़ा , पुन:-पुन: पढ़ सकें। कांग्रेस को जान लेना चाहिए कि क्रिकेट मैच में कप न लाने पर पनौती जैसे लाक्षागृह रचने से भी बच लेने में लाभ ही है , नुक़सान नहीं है। वैसे राहुल गांधी का एक वीडियो तीन दिन से बहुत वायरल है कि राजस्थान में भी सरकार जा रही , छत्तीसगढ़ में भी जा रही है , तेलंगाना में भी जा रही है …..। सारी , मैं कंफ्यूज हो गया था। यह कंफ्यूजन राहुल गांधी का कभी जाने वाला नहीं है। इस लिए उन्हें अवकाश पर भेजना , बहुत ज़रूरी है , कांग्रेस के पुनर्जीवन के लिए। बाक़ी पनौती की पनही तो खाने के लिए है ही। इसे खाने से कौन रोक सकता है भला , किसी को। खाते रहिए !
साभार-(दयानंद पांडेय)-ये लेखक के अपने विचार हैं।