पाकिस्तानी सेना के टैंक और दीगर असलहा इस हालत में नहीं हैं कि भारत से जंग कर सके
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
२०१६ से २०२२ तक पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनाब क़मर जावेद बाजवा ने एक इंटरव्यू में यह खुलासा किया है कि पाकिस्तानी सेना के टैंक और दीगर असलहा इस हालत में नहीं हैं कि पाकिस्तान भारत से जंग कर सके । टैंक चलाने भर का डीज़ल भी नहीं है ।
असल में पाकिस्तान कभी भी इस हालत में नहीं था कि भारत से जंग कर सके । पहली कश्मीर की जंग में उसने कश्मीर के कुछ हिस्से पर सिर्फ़ इसलिए क़ब्ज़ा कर लिया कि महाराजा हरि सिंह को अपनी डोगरा सेना पर बहुत भरोसा था जो अभी-अभी द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी बहादुरी दिखा कर आई थी । अपनी इसी सेना के भरोसे वह भारत के साथ विलय में विलंब करते रहे । जब सर पर पाकिस्तानी चढ़ आए तब उन्होंने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए । उनकी सेना के मुसलमानों ने ग़द्दारी कर दी और गिलगिट बाल्टिस्तान बिना लड़े ही पाकिस्तान के हवाले कर दिया ।
उसके बाद पाकिस्तान अमेरिका की गोदी में बैठ गया । मालिक का सर पर हाथ हो तो पामेरियन कुत्ता भी बुलडॉग पर भौंकता है । बहरहाल अमेरिका अपने हथियारों से डॉलर्स से खूब मदद करता रहा पर जंग तो खुद ही लड़नी पड़ती है । लिहाज़ा सन पैंसठ सन इकहत्तर की जंग पाकिस्तान हार गया और कारगिल में भी मुँह की खाई ।
रिटायरमेंट में बाद बाजवा के सुर बदल गए हैं और हक़ीक़त सर चढ़ कर बोल रही है । मोदी जी पहले ही कह चुके हैं कि पाकिस्तान को फ़तह करना हमारी फ़ौज के लिए महज़ हफ़्ते दस दिन का काम है ।
सर पर अमेरिका का साया हट चुका है, चीन से बड़ा धोखेबाज़ मुल्क कोई है नहीं । भारत पाकिस्तान की हर जंग में वह मुँह सिले बैठा रहा । पाकिस्तान के जहाज़ हवाई जहाज़ और तोपख़ाना सब पुराना पड़ गया है । माली मदद कहीं से आ नहीं रही है । खुद का ख़ज़ाना ख़ाली है । खाने के अलग लाले पड़े हुए हैं ।
जब फ़ौज लड़ नहीं सकती तो इसको पाला क्यों जा रहा है । बेहतर होगा कि हिंदुस्तान से दुश्मनी भूलकर दोस्ती कर लें ।
क़ायदे से रहेंगे तो फ़ायदे में रहेंगे!
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)