पाकिस्तानी संगठन तहरीक ए लब्बैक ने लाल किले पर घंटों में झंडा फहराने की दी धमकी
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
पाकिस्तान का अदना-सा राजनीतिक संगठन तहरीक ए लब्बैक कह रहा है, लाल किले पर घंटों में झंडा फहरा देंगे लब्बैक वाले। पर मैं कहता हूँ लब्बैक वाले यदि भारतीय राजनीति के हिसाब से चलते तो वह क्या करते? वे सीधे सीधे अपने प्रधानमंत्री को घेरते, दबाव डालते, आंदोलन करते कि हिंदुस्तान ने गुस्ताख ए रसूल की है, उसको करारा जवाब दिया जाए।
पता है हिंदुस्तानी राजनीति और सुल्तानी राजनीति में क्या फर्क है? ज्ञानवापी में शिवलिंग जब प्रकट हुआ तब एक संत हैं, कुछ दिनों से चर्चा में हैं, पूजा की मांग को लेकर अनशन पर बैठ रहे। बड़ा पॉपुलर पॉलिटिक्स। अनशन पर किसके खिलाफ बैठ गए हैं जी? प्रशासन के खिलाफ ही न? प्रशासन ही न शिवलिंग की सुरक्षा में लगा हुआ है? प्रशासन किसका? योगी जी का। मतलब शिवलिंग को फव्वारा बताया जा रहा, इसके लिए उन संत में इतनी कुब्बत नहीं की विरोधियों पर पलटकर अटैक किया जाए। अपनों से ही लड़ रहे हैं।
सुल्तानी राजनीति में इतनी काबिलियत तो होती ही है कि वे बाहरी मुद्दे जब होते हैं, तब आपस में नहीं लड़ते। क्या विपक्ष! क्या सरकार! क्या जनता! यहां पर नूपुर शर्मा ने भाजपा खातिर अपने सदस्यता का बलिदान क्या दिया, सब मिलकर मोदी से ही लड़ाई लड़ने लगे। आज मोदी अकेला ओआईसी से लड़ रहा, देश के भीतर तमाम मजहबी ताकतों से लड़ रहा, विपक्ष से लड़ रहा, इतनी लड़ाई कम ना थी कि अभक्तों ने स्वयं की भी उपस्थिति दर्ज करा ली।
साढ़े 300 वर्षों से शिवलिंग के ऊपर कुल्ला गंदगी किया जाता रहा। यह बात शिवलिंग के प्रकट होते ही सबको मालूम हो गया था। देशभर में कितने हिंदूओं, जिन्हें आज मोदी को गाली देने की शौक लगी है, ने सड़क पर उतरकर प्रतिरोध दर्ज कराया। पत्थर नहीं चलाते कम से कम मार्च ही कर लेते? इस बात पर तो बड़ी नाराजगी हो जाएगी। कहेंगे कि हमने अपना एक वोट मोदी को दे दिया है, अपनी जिम्मेवारी खत्म। मोदी को वोट दिया है देश चलाने के लिए, लेकिन कुछ लड़ाइयां सड़कों पर लड़ी जाती है। जहां लड़ने के बजाय बस आपस में ही लड़ना है। यही है हिंदुस्तानियों की लड़ाई। और लड़ेंगे सुल्तानियों के खिलाफ?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)