ओवैसी ने लगाया धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण में हिस्सेदारी का तड़का
एक सदमे वाली बात धर्मनिरपेक्ष बिरादरी वालो के लिए यह हो गई कि अमित शाह गृहमंत्री बन गए है
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
चुनाव संपन्न हुए नही कि तथाकथित धर्मनिरपेक्षता वादियो के सब्र का बांध टूट सा जा रहा है । अभी तो सिर्फ शपथ ग्रहण ही हुआ है पर इनकी तिलमिलाहट साफ झलक रही है । इनके लिए चुनाव का महत्व तब तक ही है जब तक ये सत्तासीन होते रहते है । जब तक इनके मन माफिक नतीजा आता है तब तक चुनाव मे पारदर्शिता रहती है । जब देश आजाद हुआ तब यही लोग धर्म के आधार पर इस देश का बंटवारा कर चुके थे । पर पाक में तो हिंदूओ की हालत इतना बदतर कर दिया गया कि उन्हे अंततः हिंदुस्तान वापस आना पड़ा । वहीं अपने ही देश मे धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते अलापते हम घाटी मे भी करीब करीब हिंदू मुक्त हो गए है । अब पुनः असदुद्दीन ओवैसी(Owaisi) ने अपने स्वभाव के अनुसार उन्होने जो बात की वो आपत्तिजनक है । ओवैसी(Owaisi) का कहना कि हम कोई किरायेदार नही है हम हिस्सेदार है। यह मानसिकता है इनकी, अर्थात इन्होंने अभी भी अपनी सांप्रदायिकता की सोच छोड़ी नही है । अभी तक ऐसा होता था कि धर्मनिरपेक्षता के नाम से, इनके असंवैधानिक बातों को तुष्टिकरण के नाम से मान लिया जाता था। पर अब पिछले पांच साल से ऐसे मांगो की कोई जगह नही थी और आने वाले पांच साल मे भी कोई गुंजाइश नही है ।
एक सदमे वाली बात धर्मनिरपेक्ष बिरादरी वालो के लिए यह हो गई कि अमित शाह गृहमंत्री बन गए है । एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा वाली बात हो गई है । अब इन लोगो की स्थिति मात्र विधवा विलाप सी हो गई है । शाह जी के इस पद को सुशोभित करने से ही सब समीकरण बदल गए है । घाटी के नेताओ के भी सुर बदल गये है, पंडितो को वापस आने की बात कही जा रही है ।
पुराने हिसाब किताब भी बाकी बचे है । जैसे 84 के गुनहगार वैसे ही 90 के गुनहगारो की सजा तय होनी बाकी है । वहीं दस मिनट के लिए पुलिस हटाने की बात करने वालो को भी अपने सीमा का अहसास हो गया होगा । जो पार्टी मात्र एक सांसद चुनने के बाद इस तरह की बात करे तो तीन सौ तीन सांसद के दल को क्या करना चाहिए ? जिस प्रधानमंत्री पर पड़ौसी देश के नागरिको का इतना भरोसा है कि मोदी जी उनकी सहायता करेंगे परन्तु हमारे देश के विपक्ष को भरोसा नही है। ये कितने दुर्भाग्य की बात है ।
ओवैसी(Owaisi) आप अपने को इस देश का किरायेदार समझते हो तो ये आपको मुबारक पर हम तुमको अब हिस्सेदार नही समझते । पर अगर इस मानसिकता में तुम हो तो पिछले बँटवारे के हिस्से मे शामिल होकर वहाँ अपने धर्म के आधार पर हुआ बंटवारा मांग सकते हो । जिन लोगो ने उस समय इनके लिए उपवास किया उनकी धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण की बड़ी कीमत इस देश को चुकानी पड़ रही है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)