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हमारे समाज सेवक समाजसेवी है या स्वयंसेवी??

जितने भी बंदे राजनीति मे उतरते है पहले वो समाजसेवी का अपना निर्मित गाउन पहन लेते है

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Positive India: मै लंबे समय से तथाकथित मान्यवर समाजसेवियों को देख रहा हू । पर ये तय नही कर पा रहा हू कि ये समाजसेवी है कि स्वयंसेवी ? जितने भी बंदे राजनीति मे उतरते है पहले वो समाजसेवी का अपना निर्मित गाउन पहन लेते है । फिर कुछ अशासकीय व असामाजिक कार्य के लिए जोर आजमाईश करते हैं । फिर जी हुजूरी का माहौल बनाने के लिए पहले तो थोड़ी जेब हल्की करते है। इसके तहत पांच सात कारिंदे हर समय तैनात रखते हैं। इससे बड़े समाजसेवी बनने मे काफी हद तक सहायता मिलती है । फिर अगला सबसे बड़ा हथियार दरियादिली दिखाने का है । वहां तो इतनी दरियादिली होनी चाहिए कि चंदे मे आपके नाम के ऊपर एक भी नाम नहीं रहना चाहिए । आपका चंदा ही आपकी हैसियत बनाता है । वहां का अधिकांश खर्च जब आप ले रहे है तो वो निहाल हो जाते है या दूसरे शब्दो मे कुछ समय के लिए बिक से ही जाते है। उनका आनंद इतने चरम सीमा मे रहता है फिर क्या कहने। इतना करने के बाद अगर आपने मुख्य कार्यकर्ता पर नजरे इनायत कर दी तो एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा की स्थिति हो जाएगी । भरी सभा मे जयकारा बहुत ही छोटी बात होगी । आपको कंधे पर लेकर नाचना इस प्रकिया का अंग होगा । ऐसा कर आप समाजसेवी बनने के एक कदम आगे बढ़ गये । अब तो कोई भी कार्यक्रम आपके मुख्य आतिथ्य के बिना संभव ही नही है । जब ऐसा आदमी हो तो राजनीतिक दल भी अपने को उसके बगैर असहाय महसूस करते है । यहां पर भी वही प्रकिया, जो मिक्सचर प्लांट समाजसेवी बनने के लिये किया था उसी को पुनः एक बार चलाना है । आप योग्य हो या नही यह कही भी मुद्दा नही बनेगा । अगर आप अशिक्षित है तो भी सर आखों पर । लोगो का आपके उपर पूरा ध्यान आपके किये हुए खर्च पर रहता है । इसलिए बौद्धिक जमात तथा योग्य लोग अनफिट रहते है । जो बंदा कार्यक्रम के बुके, फूल हार वह नाश्ते का खर्च न उठा सके, वो कायका समाज सेवी ? फिर राईट टाईम मे पहुँच जाये, ये एक बड़ा दोष है; जब तक पांच छह बार फोन न कर दे। तभी तो समाजसेवी के बहुमूल्य समय का पता चलता है । मक्कार किस्म के सेवी इतने मीठे होते है कि शहद भी शर्मा जाय। मानना पड़ेगा स्वयंसेवी की शतरंज की चाल ऐसी रहती है कि वास्तविक समाजसेवी तिनके के बराबर उड़ जाते है । ऐसा आधिपत्य होता है इनका । समाजिक तथा राजनीतिक गलियारे इनके बगैर सूने से लगते है । अगर इन्हे ढंग से बोलना नहीं आता तो इनके टूटे फूटे उद्बोधन रक्त संचार का काम करते है । इसीलिए राजनीति मे पैसे वालो ने भैय्या का रोल निभाना चालू कर दिया है । अगर आप पैसे वाले हो तो इतना अच्छा भाई कहा मिलेगा ? ऐसा भाई जो बड़े बड़े होर्डिंग अपने खर्चे से बनवाकर उसमे नगर के छोटे सेवियों की भी फोटो रहे, जेब खर्च उठाये यही तो सब रहता है । पर ये सब कहाँ से, कैसे मैंनेज होता है? ये भर कोई नही पूछे ? ऐसे समाज सेवियों को शत शत नमन ।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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