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विरोध करो रे वर्ना ये वैक्सीन हमारे राजनीति के मंसूबों पर पानी फेरने का काम करेगी

विपक्ष द्वारा कोरोना वैक्सीन के विरोध पर कटाक्ष।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
मेरे को इस देश के सत्ता मे बैठे नेताओं पर तरस आता है कि साधारण सी दिखने वाली बिमारी मे हाय तौबा मचा रहे है । कोरोना, यह कुछ नहीं एक साधारण से नजले की बिमारी से ज्यादा कुछ नहीं है।पता नहीं इस बिमारी का हौव्वा पूरे राष्ट्र मे खड़ा खड़ा कर दिया। मैं हैरान हूं कि जितनी मौतो का हवाला हर समय दिया जा रहा है, उससे ज्यादा मौते तो सड़क एक्सीडेंट में हो जाती है । क्या हम सड़कों पर चलना बंद कर दे ?
मैं अब भूमिका के बाद विषय पर आऊं । पता नहीं इस तथाकथित बिमारी को लेकर प्रधानमंत्री जिस प्रकार संजीदा दिखते है तो एक प्रकार से चिंता व्यापत होने लगती हैं। भाई हम लोग राजनीति करने आये है और इन लोग भी राजनीति कर ही यहां तक पहुंचे है। कभी भी लोकतंत्र में जनता को अपना परिवार समझने की भूल नहीं करना चाहिए। जनता को दिए वायदे कभी पूरा करने के लिए नहीं होते । कोरोना के लिए टीका या वैक्सीन अपने देश में बनना और फिर इतना पैसा खर्च करना, कहां का न्याय है? देश में पांच छह जगह कोविड वैक्सीन को रिसर्च की मंजूरी देना सिर्फ समय का और पैसे का अपव्यय है । अब दो कंपनियों ने वैक्सीन का निर्माण कर लिया, वो भी इतने कम समय में, वो भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में, तो शंका का आना लाजिमी है । हमे तो बिलकुल विश्वास नहीं है कि हम पश्चिमी देशों के मुकाबले में इस तरह आ सकते है। एक सशक्त दल के नाते भ्रम फैलाने का हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। मैं आप लोगों को बता दू कि हम राजनीति के वो चाणक्य है जिनकी वजह से सामने वाले के नैतिकता और आदर्श धरे के धरे रह जाऐंगे। कुछ भी हो यह वैक्सीन हमारे राजनीति के मंसूबों पर पानी फेरने का काम करेगी, तो मुखालफत तो बनती है।  वैसे भी मोदी जी के आने के बाद से हमारे राजनीतिक कैरियर मे जो सुनामी आई है, उसकी टीस आज भी नहीं गई है। वैसे भी हमने कोई स्वदेशी का झंडा तो नहीं उठाया है जिससे हम इन देशी कंपनीयो के समर्थन पर बोले। विदेशी वैक्सीन मंगवाने से हमारी प्रतिष्ठा जहां बढ़ती है, वही विदेशों से संबंध भी प्रगाढ़ होते है पर मोदी जी ने तो सत्यानाश कर डाला! जब हमारे बच्चे विदेशों से पढ़कर आते है और वो देशी वैक्सीन लगवाये, ये हमारे इज्जत के खिलाफ है।  अभी तो आप लोगों ने हमारे विरोध का सिर्फ ट्रेलर देखा है, अभी तो पिक्चर रिलीज होनी बाकी है । यह विरोध तो हमारा सिर्फ वैक्सीन बनने के पहले का था। बनने के बाद की विरोध की राजनीति की रूपरेखा हमने पहले ही तैयार कर ली है।  हमारे एजेंडा मे सिर्फ यह शामिल है कि इसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देना है । हम वो लोग है जो वैक्सीन मे भी पार्टी खोज लेते हैं। हम वो लोग है जो इसमे धर्म का भी ऐंगल खोज लेते है  जो संवेदनशील विषय है अगर हमको अपने राजनीतिक नफा नुकसान दिखा तो उसे शामिल करने मे भी हम नहीं हिचकेंगे। 
मै आपको एक बात साफ कर दू कि हम राजनीति करने आये है, कोई भजन करने नहीं आए है । हमारी पूरी संवेदना सिर्फ अपने राजनीति को लेकर ही होती है।  वहीं लोक कल्याणकारी नीतियां सिर्फ हमारे ऐजैंडे मे शामिल करने के लिए रखी रहतीं हैं।
मै एक चिकित्सक के नाते भले वैक्सीन की सार्थकता समझता हू पर मेरे जो राजनीतिक प्रतिबद्धता है वो ज्यादा महत्वपूर्ण है।  मै आपको बता दूं कि हम वैक्सीन के विरोध मे, यहां बिलकुल नहीं लगवाने का काम करेंगे। हम जो मौज मस्ती करने जाते है तो वहां कभी भी लगवा लेंगे। मैं उस जनता का भला क्यों सोचूं जिन्होने हमे सत्ता से खारिज कर दिया। जब हमारे लिए उनके पास कोई जगह नहीं है तो क्या भला करने का ठेका हमने ही लिया हुआ है?
मैं आपको एक बात से अवगत करा दूं, देश हमारे लिए सेकेंडरी है, हमारी राजनीति ही हमारा सब कुछ है । हमारे राजनीतिक कौशल से मोदी जी भी अच्छे से परिचित है। हम ऐसा लोकतांत्रिक आंदोलन खड़ा करते है जिसकी गूंज विदेशों तक में होती है । हमने तय कर लिया है कि इस वैक्सीन के खिलाफ हम अपने खून के आखिरी बूंद तक भ्रम फैलाने का नेक काम करते रहेंगे। हम लोग बहुत भाग्यशाली है कि हमारे विचारधारा मे शामिल वो लोग भी, जिसमें चिकित्सक भी शामिल है, वो लोग भी इस राजनीति का मौन हिस्सा बनकर हमे अपना सहयोग प्रदान करते रहेंगे।  जैसा जैसा समय दिखेगा, हम विरोध इसी आधार पर करेंगे।  मोदी जी सफल हुए तो हमारी राजनीति पर ही ग्रहण लग जाएगा । मेरा अपने समर्थकों से अनुरोध है कि मेरे इस अभियान का हिस्सा बन कर जहां मुझे सफल बनाने का काम करे वहीं अपना भी राजनीतिक भविष्य संवारे । बस एक ही इच्छा है कि यह कार्यक्रम सफल न हो जो हमारे सन चौबीस का एक मुख्य एजेंडा बनेगा।  हम है तो राजनीति है, हम है तो समस्या है, हम है तो मुद्दे है, हम ही है जो इस महामारी मे जनसंख्या नियंत्रण करने मे सहयोग प्रदान कर रहे है। हम हैं तो न्यूज चैनल बहस बनाते है। हम है तो अच्छे से अच्छे पढ़े-लिखे व्यक्ति भी दिवालियापन की बातें करते दिखते हैं। लेख बहुत लंबा हो रहा है हममें वो कूबत है कि किसी समस्या को उलझाने मे हमारा कोई सानी नहीं है । बस इतना ही।
लेखक:डा.चंद्रकांत रामचन्द्र वाघ-अभनपूर(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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