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मौकापरस्त राजनीतिक गठबंधन आज का कटु सत्य

केजरीवाल को थप्पड़ राजनीति मे अस्थिरता का संदेश दे रहा है ।

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Positive India:क्या हमने इसी लोकतंत्र के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी ? इसे देखकर तो कही से नही लगता कि लोकतंत्र की ये भी परिभाषा हो सकती है । अब तो कोई सिद्धांत नही सिर्फ अपनी सुविधाजनक राजनीति को लोकतंत्र का चोला पहा दिया गया है । गुलजार जी की सातवें दशक की फिल्म ‘मेरे अपने’ के बड़े पैमाने का नाम ही प्रजातंत्र रख दिया गया है। एक मुहल्ले का कब्जा या दावेदारी बड़े व्यापक रूप मे देश के मामले मे इसे लोकतंत्र ही कहा जाता है । इसलिए चुना हुआ प्रतिनिधि सीधे पांच साल बाद ही मिलता है । कायकी सेवा ? जब ये एक दूसरे पर आरोप लगाते है तो कही से भी नही लगता की ये जनता या देश की सेवा के लिए निकले है । इनके लिए राजनीति एक व्यवसाय से ज्यादा कुछ नही है । इसलिए जब बड़े लोग बगैर कुछ किये उम्मीदवार बन जाते है है तो इस बात पर मुहर लग जाती है । आज ही केजरीवाल पर रैली के समय हमला ने सनसनी फैला दी । आजकल इस तरह की बातें जहां चिंताजनक है वही राजनीति मे अस्थिरता का भी संदेश देती है । इसका मतलब यह हो गया कि लोगो मे सहिष्णुता ही खत्म हो गई है । मैंने जैसा देखा है, पहले लोगो मे इस तरह की घटना से रोष रहता था । पर नेताओ के प्रति लोगो में अविश्वास की भावना है, जिसके कारण उस चिंता का अभाव साफ परिलक्षित होता है । वही इस तरह की घटनाऐ राजनीतिक रूप से भी प्रायोजित होती है जिससे राजनीतिक लाभ लिया जा सके । यही कारण है कि इस घटना के किसी भी दोषी को सजा की बात कभी न्यूज नही बन पाई । पुनः मुद्दे पर, सिद्धांत की बात की जाये तो किसी का किसी से गठबंधन का नैतिक हक नही है । ऐसे स्थिति मे किसी का किसी से छत्तीस का राजनीतिक आंकड़ा हो और जब गठबंधन की बात हो तो कैसे उस पर यकीन किया जाये । यही कारण है बैंगलोर और कलकत्ता का हश्र वही हुआ । दूसरी तरफ पीडीपी व बीजेपी का मेल मिलाप भी अपनी अकाल मौत मारा गया । कुल मिलाकर इसमें सिर्फ मौकापरस्तो की ही जगह है । इसलिए नीचे पायदान से लेकर उपर तक यही लोग विराजमान है । इसलिए आज छेनू दूसरे खेमे मे दिख रहा है । आओ अब हमे इसी लोकतंत्र का हिस्सा बनना है यही आज का कटु सत्य है ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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